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पेसा बाक़ी राज्यों में ग्राम सभा को संसाधनों पर हक़ देता है, MP में धर्मांतरण रोकता है

इस क़ानून के तहत ग्राम सभा को सबसे महत्वपूर्ण अधिकार प्राकृतिक संसाधनों पर मिलता है. इस क़ानून के अनुसार जल स्त्रोत, शालात ज़मीन, लघु वन उपज संग्रह और बेचना, जंगल का उपयोग और भूमि अधिग्रहण तथा खनन मामलों में स्थानीय आदिवासियों के स्वामित्व को क़ायम रखते हुए, संबंधित क़ानूनों और नीतियों पर प्रभावी अमल तथा निगरानी. 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को कहा कि पेसा (Panchayats Extension to Scheduled Areas (PESA) ग्रामसभा को कई अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि पेसा लागू होने से आदिवासी इलाकों में धर्मातरण और ज़मीन के लालच में आदिवासी लड़कियों से शादी करने की घटनाएं कम होंगी. 

यह बातें उन्होंने पेसा से संबंधित नियमों की घोषणा करते हुए शहडोल ज़िले के लालपुर नाम के गाँव में कही हैं. यह कार्यक्रम जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भी मौजूद थीं. 

पेसा क़ानून अनुसूचित इलाक़ों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार देता है. ख़ासतौर से अनुसूचित इलाक़ों में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभा को मिल जाता है. मध्य प्रदेश में पेसा लागू होने के बाद 89 ब्लॉक के 2350 गाँवों की 5212 पंचायतों को अपने संसाधनों के प्रबंधन का हक़ मिल सकेगा.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कहा कि अब ग्राम सभाओं को अधिकार मिलने के बाद आदिवासी लड़कियों से शादी के नाम पर जो ज़मीन हड़प ली जाती थी, वह नहीं हो सकेगा. अब ग्राम सभा इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप कर सकेगी.

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पेसा लागू होने के बाद धर्मांतरण भी रूक सकेगा. शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश में धर्मांतरण नहीं होने दिया जाएगा. 

पेसा के प्रावधान और शिवराज चौहान की बातें

पेसा अधिनियम 1996 को लागू करने के मामले में मध्य प्रदेश को सबसे फिसड्डी राज्य कहा जा सकता है. 2018 में अगर मध्य प्रदेश में बीजेपी को हार का सामना नहीं करना पड़ता तो शायद राज्य में पेसा क़ानून के नियम अभी भी ना बन पाते. 

क्योंकि बीजेपी को यह पता है कि अगर 2018 में वो सत्ता से बाहर हुई थी तो आदिवासी मतदाता की नाराज़गी उसमें एक बड़ा कारण थी. बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी को तोड़ कर पिछले दरवाज़े से एंट्री कर ली है. लेकिन वो जानती है कि अगले साल यानि 2023 के विधान सभा चुनाव में उसे अगर जीत चाहिए तो फिर आदिवासी मतदाता को अपने पाले में लाना ही होगा.

पिछले एक साल से मध्य प्रदेश में आदिवासियों को केन्द्र में रख कर तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. इसी क्रम में राज्य में आख़िरकार पेसा को लागू करने की घोषणा भी की गई है. 

लेकिन इस नियम के तहत आदिवासी इलाक़ों में ग्राम सभा को आदिवासी परंपरा, प्राकृतिक संसाधनों और जीवनशैली के संरक्षण की बात करने की बजाए, मुख्यमंत्री धर्मांतरण और आदिवासी लड़कियों से ग़ैर आदिवासी लड़कों की शादी जैसे मसले उठा रहे हैं. 

पेसा अधिनयम के तहत ग्राम सभाओं को प्रमुख तौर पर तीन शक्तियाँ प्राप्त होती हैं. इस क़ानून के तहत विकास के मसलों में ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं के पूर्व अनुमोदन, जनजाति उपयोजना पर नियंत्रण, विकास ख़र्च हुई राशी का ग्राम सभा से अनुमोदन, ग़रीबी उन्मूलन और अन्य व्यक्तिगत लाभ की योजनाओं के लिए लाभार्थियों का चयन और सामाजिक क्षेभों की संस्थाओं पर नियंत्रण का अधिकार है. 

इसके अलावा परंपरागत आदिवासी क़ानून और सामाजिक व्यवस्था के अनुसार स्थानीय विवादों के निपटारे का अधिकार भी ग्राम सभा को दिया जाता है. 

इस क़ानून के तहत ग्राम सभा को सबसे महत्वपूर्ण अधिकार प्राकृतिक संसाधनों पर मिलता है. इस क़ानून के अनुसार जल स्त्रोत, शालात ज़मीन, लघु वन उपज संग्रह और बेचना, जंगल का उपयोग और भूमि अधिग्रहण तथा खनन मामलों में स्थानीय आदिवासियों के स्वामित्व को क़ायम रखते हुए, संबंधित क़ानूनों और नीतियों पर प्रभावी अमल तथा निगरानी. 

मध्य प्रदेश ही नहीं बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी को लगातार चर्चा में ला रही है. लेकिन जब आदिवासियों के लिए किये जाने वाले कामों की बात आती है तो उसमें प्रतीकात्मक और भावनात्मक मुद्दों पर खेलने की कोशिश ज़्यादा दिखाई देती है.

केन्द्र में पिछले 8 साल से सरकार चला रही बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसी एक क़ानून का ज़िक्र नहीं कर सकते हैं जो आदिवासियों के हक़ में बनाया गया है. बल्कि उनकी सरकार पर आरोप है कि उसने आदिवासियों के हक़ में बने क़ानूनों को कमज़ोर करने की कोशिश ही की है. 

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