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पहाड़ी कोरवा और पंडो क्यों ढोडी या झरिया का पानी पीने को मजबूर हैं

भारत में 700 से ज़्यादा आदिवासी समुदाय हैं जिन्हे सरकार ने अधिकृत तरीके से अनुसूचित जनजाति की सूचि में रखा है. इनमें से 75 जनजातीय समुदायों को पीवीटीजी (particularly vulnerable tribal group) कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ के पहाड़ी कोरवा और पंडो आदिवासी समुदायों को भी इसी श्रेणी में रखा गया है. राज्य के सरगुजा संभाग में ये आदिवासी रहते हैं.

पीवीटीजी यानि विशेष रुप से पिछड़ी जनजातियों को एक समय में आदिम जनजाति भी कहा जाता था. सरकार यह मानती है कि इन जनजातियों को विशेष संरक्षण की ज़रूरत है.

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क्योंकि ये आदिवासी समुदाय कई तरह के ख़तरों से घिरे हुए हैं. इनमें से कई समुदाय ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या लगातार घट रही है. पहाड़ी कोरवा ऐसा ही एक समुदाय है.

छत्तीससगढ के पंडो और पहाड़ी कोरवा आदिवासियों को राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है. क्योंकि आज़ादी के बाद इन आदिवासियों को बसाने के लिए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पहल की थी.

सरकार के तथाकथित विशेष संरक्षण के बावजूद ये आदिवासी समुदाय दयनीय स्थिति में जी रहे हैं.

सूरजपुर ज़िले में हमने महेशपुर पंचायत की कम से कम दो आदिवासी बस्तियों में यह पाया कि ये आदिवासी आज भी पीने के स्वच्छ पानी को मोहताज हैं. आज भी ये आदिवासी जंगल में ढोढी या झरिया का पानी पीने को मजबूर हैं.

इन आदिवासी बस्तियों में एक भी घर पक्का नहीं है. इसके अलावा वन अधिकार कानून का लाभ भी इन आदिवासियों को नहीं मिल रहा है.

आप यह पूरी कहानी उपर के लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं.

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