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आदिवासी बच्चों के लिए इंटरनेट तलाशना मौत से खिलवाड़ के बराबर

एक तरफ़ जहां पूरे देश में स्कूल खुलने को लेकर कम से कम शहरों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता असमंजस में हैं, वहीं दूसरी तरफ़ देश के ग्रामीण और आदिवासी इलाक़ों में ऑफ़लाइन क्लास का इंतज़ार हो रहा है.

इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि इन बच्चों के माता-पिता कोरोनावायरस के बारे में चिंतित नहीं हैं, लेकिन उनके लिए ऑनलाइन क्लास के लिए इंटरनेट की तलाश ज़्यादा बड़े जोखिम लेकर आती है.

देश के ज़्यादातर आदिवासी बच्चों के लिए पेड़ों और पहाड़ियों पर चढ़ना, जंगल और नदियां पार करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है. हमारी वेबसाइट पर आपको कई ऐसी कहानियां मिल जाएंगी, जिनमें आदिवासी बच्चों द्वारा ऑनलाइन क्लास में शामिल होने के लिए किए जाने वाले जतन का ज़िक्र है.

केरल के कण्णूर ज़िले के पन्नियोड आदिवासी कॉलोनी में छात्र ऑनलाइन क्लास में भाग लेने के लिए जंगल जाते हैं, क्योंकि उन्हें इंटरनेट कनेक्शन वहीं मिलता है. हर दिन, वो घने जंगल जाते हैं, और इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए एक अस्थायी ट्री हाउस पर चढ़ते हैं, जो उनके माता-पिता ने उनके लिए बनाया है.

घने जंगल में जाना ख़तरे से खाली नहीं है. ऊपर से इंटरनेट के लिए पेड़ों पर चढ़ना आसान नहीं है. 17 साल के अनंत बाबू को इस ख़तरे का आभास तब हुआ, जब वो पेड़ पर बैठे थे और 10 मीटर की ऊंचाई से नीचे चट्टानों पर गिर गए. उनकी किस्मत अच्छी है कि वो अभी भी ज़िंदा हैं, नहीं तो ओडिशा के 13 साल के अंद्रिया जगरंगा जैसा हश्र उनका हो सकता था.

17 साल के अनंत बाबू (Photo Credit: The New Indian Express)

इन घटनाओं ने ख़राब कनेक्टिविटी वाले इलाक़ों में ऑनलाइन क्लास में भाग लेने के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों की दुर्दशा को उजागर किया है.

अनंत की मां पीआर उषा ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हम कनेक्टिविटी के लिए जून से अधिकारियों के दरवाज़े खटखटा रहे हैं. हम भाग्यशाली हैं कि हमारा बेटा अभी भी ज़िंदा है. बस्ती में 1 से 11वीं कक्षा में पढ़ने वाले लगभग 70 छात्र हैं. हमने ज़िला कलेक्टर को एक ज्ञापन दिया है. मीडिया में भी यहां के छात्रों की दुर्दशा कई बार उजागर की गई है.”

इस तरह की घटनाओं का असर सिर्फ़ छात्र पर नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार पर पड़ता है. अनंत की ही बात करें तो, अब उसकी देखभाल करने के लिए उनके पिता, जो एक दिहाड़ी मज़दूर हैं, को घर पर रहना पड़ेगा. इससे परिवार की आर्थिक स्थिति और बिगड़ जाएगी.

इस इलाक़े में बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी का वादा मंत्री ने किया है. ज़िला कलेक्टर का भी दावा है कि आदिवासी बस्तियों में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने पर काम चल रहा है.

कलेक्टर टी वी सुभाष का कहना है कि ज़िले में 137 आदिवासी बस्तियां हैं जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई जानी है. इनमें से 66 बस्तियों में कनेक्टिविटी स्थापित की जा चुकी है, और जल्द ही बाकी बस्तियों तक इंटरनेट पहुंच जाएगा.

कण्णूर के पन्नियोड के अलावा, चप्परप्पडवु, उदयगिरि, पेरियारम, कोलयाडु, कोट्टियूर, केलकम और कलेक्टर को 15 दिन के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.

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