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आप मौक़ा तो दीजिए, आदिवासी छात्र भी आगे बढ़ सकते हैं

गुजरात शिक्षा विभाग के कैंपस रिक्रूटमेंट में इस साल बड़ी संख्या में आदिवासी छात्रों को जॉब प्लेसमेंट ऑफ़र मिले हैं. ऑन-कैंपस भर्ती में भाग लेने वाले 2,405 आदिवासी उम्मीदवारों में से 2,101 का चयन हुआ है.

राज्य शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ इस साल दूरदराज़ के क्षेत्रों से आए आदिवासी छात्रों ने अच्छा प्रदर्शन किया है.

गैर-आदिवासी छात्रों के मामले में, नियुक्ति प्रक्रिया में भाग लेने वाले 14,793 उम्मीदवारों में से, आधे से भी कम सिर्फ़ 7,135 को ऑफ़र लेटर मिले.

चयन किए गए ज़्यादातर छात्रों को 1.5 लाख रुपये से 2.5 लाख रुपये के बीच सालाना वेतन के पैकेज की पेशकश मिली है. (यह संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है, लेकिन इस रिपोर्ट के ज़रिये हम यही कहना चाहते हैं कि आदिवासी और दूसरे पिछड़े वर्ग के लोगों को मौक़े मिलने पर वो आगे बढ़ सकते हैं.)

आदिवासी बहुल, पंचमहल ज़िले से इस साल 700 उम्मीदवारों का चयन किया गया है.

कैंपस प्लेसमेंट में हिस्सा लेने वाली कंपनियों में L & T, Reliance Nippon, Tridhya Tech Pvt Ltd, Eleorex, और Collabera Services Pvt Ltd शामिल हैं.

आदिवासी उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा भर्तियां बीए के अभ्यार्थियों की हुई हैं. इसके बाद डिप्लोमा (15%), बीएससी (12%), बीकॉम (11%), बीई (9%) और बीएड (3%) के उम्मीदवार थे.

कैंपस प्लेसमेंट की प्रक्रिया फरवरी में शुरू हुई भी, और फ़िलहल चल रही है. पिछले साल कोविड के चलते यह नहीं हो पाई थी. ज़्यादातर उम्मीदवारों को सेल्स, एकाउंट्स, रिसेप्शन और मार्केटिंग जैसे विबागों के लिए चुना गया है.

ज़्यादातर (60%) नौकरियां सर्विस सेक्टर में हैं, जबकि 40 प्रतिशत मैनुफ़ैक्चरिंग में.

गुजरता सरकार अगले साल होने वाले राज्य चुनावों से पहले 90 लाख आदिवासी आबादी तक पहुंचने के प्रयास में है. इसके लिए सरकार ने इस साल के बजट में अलग से पैसा भी दिया गया है.

इस ख़बर का महत्व समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि पिछले दिनों कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण नीति की अनदेखी की जा रही है.

हाल ही में शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ग्रैजुएट कोर्स में आदिवासी और दलित छात्रों की मात्रा बेहद कम और चिंताजनक है. इसके लिए पैनल ने यूजीसी को कटघरे में खड़ा किया था.

इसके अलावा आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में आदिवासियों को न नौकरियां मिल रही हैं, न ही पीएचडी में एडमिशन.

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