शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में समाने आया है कि ग्रैजुएट कोर्स में आदिवासी और दलित छात्रों की मात्रा बेहद कम और चिंताजनक है.
समिति ने कहा है कि इन छात्रों का ग्रैजुएट कोर्स में दाखिला बढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) को उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाना होगा.
स्नातक स्तर पर छात्रों का ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER – Gross Enrolment Ratio) राष्ट्रीय स्तर पर 26.3 प्रतिशत है. अनुसूचित जाति के लिए यह 23 प्रतिशत है, लेकिन अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए यह सिर्फ़ 17.2 प्रतिशत है.
संसदीय पैनल ने पाया है कि यूजीसी के बताए उपाय और योजनाएं या तो ठीक से इस्तेमाल नहीं हो रही हैं, या फिर लागू ही नहीं हैं.
राज्य सभा की वेबसाइट पर अपलोड हुई यह रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग को इसी महीने सौंपी गई है.
AISHE रिपोर्ट (2018-2019) के अनुसार भारत में ग्रैजुएट स्तर पर सबसे ज़्यादा छात्रों ने दाखिला लिया है. लेकिन कुल दाखिलों के 79.8 प्रतिशत में दलित छात्र सिर्फ़ 14.9 प्रतिशत हैं, और आदिवासी छात्रों की संख्या सिर्फ़ 5.5 प्रतिशत है.
हाल ही में सरकार ने संसद में माना था कि देश के प्रीमियर इंस्टिट्यूट्स में पीएचडी में दाख़िले के मामले में आदिवासी, दलित और ओबीसी की संख्या बेहद कम, या ना के बराबर है.
अब ग्रैजुएट स्तर के यह आंकड़े साफ़ बता रहे हैं कि आदिवासी और दलित छात्रों को आगे बढ़ने के मौक़े ही बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.
इस पूरे मामले पर यूजीसी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि उसने आदिवासी, दलित और ओबीसी छात्रों के दाखिले बढ़ाने के लिए कई क़दम उठाए हैं.
यूजीसी का कहना है कि उसने आदिवासी और पिछड़े वर्ग के छात्रों के ख़िलाफ़ भेदभाव ख़त्म करने के लिए UGC (Promotion of Equity in Higher Education Institutions) Regulation, 2012 लागू किया है. इस विनियमन का उद्देश्य सभी तरह के उत्पीड़न से इन छात्रों की रक्षा करना है.
इसके अलावा विश्वविद्यालयों में सामाजिक बहिष्कार और समावेशी नीति के अध्ययन के लिए केंद्र स्थापित किए गए हैं.
कॉलेजों में समान अवसर सेल (EOC – Equal Opportunity Cell) के कार्यान्वयन के लिए दो लाख रुपए का ग्रांट भी दिया गया है. EOC पिछड़े वर्ग के लिए बनी नीतियों और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन की देखरेख करता है.