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आदिवासी युवा मतदाताओं की पीड़ा – ज़िंदगी का पहला वोट, लेकिन अपनी ज़मीन पर आख़िरी

आदिवासियों की इस मौजूदा पीढ़ी के लिए यह एक ख़ास चुनाव है. एक तरफ़ जहां इनमें से कई पहली बार वोट डाल रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ यह इनके लिए अपनी ज़मीन पर वोट डालने का आख़िरी मौक़ा भी है.

आंध्रप्रदेश में आजकल पंचायत चुनाव चल रहे हैं. बुधवार को हुए तीसरे चरण में पोलावरम बांध परियोजना से प्रभावित ज़िले भी शामिल थे. और इस मतदान के लिए हज़ारों आदिवासी युवक अपना वोट डालने के लिए पहुंचे.

आदिवासियों की इस मौजूदा पीढ़ी के लिए यह एक ख़ास चुनाव है. एक तरफ़ जहां इनमें से कई पहली बार वोट डाल रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ यह इनके लिए अपनी ज़मीन पर वोट डालने का आख़िरी मौक़ा भी है.

के आर पुरम इंटिग्रेटिड ट्राइबल डेवेलपमेंट एजेंसी (ITDA – Integrated Tribal Development Agency) के परियोजना अधिकारी, आर वी सूर्यनारायण के मुताबिक़ हजारों युवा मतदाता चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद और अन्य शहरों से वोट डालने के लिए पहुंचे, और अपनी बस्तियों का जायज़ा लिया.

दरअसल, पोलावरम परियोजना से हज़ारों आदिवासी परिवार विस्थापित हो रहे हैं. और अगली बार जब चुनाव होगा, तो इन आदिवासियों की पैतृक ज़मीन पानी के नीचे होगी.

दूर-दराज़ से आए इन युवाओं के लिए अपने घर वापस आना बेहद उदासीन (Nostalgic) रहा. उनमें से कई ने कहा कि उनके बाप-दादा गोदावरी के तट पर रहते थे, और वह ख़ुद जंगलों में पैदा हुए.

इन युवाओं को दुख है कि पोलावरम परियोजना से आदिवासियों की आदतें, उनकी परंपराएं, और उनकी संस्कृति ही नष्ट हो रही है.

कई आदिवासी युवाओं ने वेलेरुपाडु मंडल के काटकुरु, टेकुरु, कोइड़ा, और मेदियापल्ली में, और कुकुनूर मंडल के किव्वाका, तोंडी पका, विंजारम और कुकुनूर के पोलिंग स्टेशनों पर अपना वोट डाला.

क़रीब 1.03 लाख विस्थापित परिवारों को पूर्व और पश्चिम गोदावरी ज़िलों में पोलावरम रिलीफ़ एंड रीहैबिलिटेशन (Relief and Rehabilitation) पैकेज के तहत स्थानांतरित किया जाना है. सरकार ने पहले ही इन दो ज़िलों की 17 बस्तियों को शिफ़्ट कर दिया है.

कुल 1,05,601 परिवार – पूर्वी गोदावरी में 70,929 और पश्चिम गोदावरी में 34,672 – इस राष्ट्रीय परियोजना से प्रभावित हुए हैं. इनमें से आधे से ज़्यादा आदिवासी परिवार हैं.

पोलावरम प्रोजेक्ट का आंध्रप्रदेश से सटे ओडीशा और छत्तीसगढ़ में भी विरोध हो रहा है, क्योंकि दोनों राज्यों के कई आदिवासी इससे प्रभावित होंगे. दोनो की यह मांग पुरानी है कि उनके राज्यों में विस्थापित होने वाले आदिवासियों को मुआवज़ा मिले, और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर शिफ़्ट भी किया जाए.

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