HomeAdivasi Daily‘मुतुवान कल्याणम’, आदिवासी परंपरा तलाशती एक फ़िल्म

‘मुतुवान कल्याणम’, आदिवासी परंपरा तलाशती एक फ़िल्म

केरल के मुतुवान आदिवासी समुदाय पर बनी फ़िल्म ‘मुतुवान कल्याणम’ में एक बुज़ुर्ग कहते हैं, “जंगल ख़त्म हो गए, साथ ही हमारी परंपराएं भी.” यह शब्द सिर्फ़ इस समुदाय की नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की हालत बयान करते हैं.

आदिवासियों का जंगल से गहरा रिश्ता है. खाने के लिए, रहने के लिए, आजीविका के लिए, और अपनी कई परंपराओं के लिए, देश के आदिवासी अपने आसपास के जंगलों पर ही निर्भर हैं.

केरल के मुतुवान आदिवासी समुदाय पर बनी फ़िल्म ‘मुतुवान कल्याणम’ में एक बुज़ुर्ग कहते हैं, “जंगल ख़त्म हो गए, साथ ही हमारी परंपराएं भी.” यह शब्द सिर्फ़ इस समुदाय की नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की हालत बयान करते हैं.

एक या दो पीढ़ी पहले तक मुतुवान समुदाय में शादी से जुड़ी एक दिलचस्प परंपरा थी – पेण्णेडुप्पु. इसमें शादी से पहले दुल्हन अपने दोस्तों के साथ जंगल चली जाती थी, और फिर दूल्हे को उसे ढूंढना होता था.

दूल्हे के दोस्त तलाश में उसकी मदद करते थे, और दुल्हन के मिल जाने के बाद वहीं जंगल में शादी संपन्न हो जाती थी.

भरतबाला की फ़िल्म ‘मुतुवान कल्याणम’ का एक दृश्य

लेकिन कई सालों से सिकुड़ते जंगलों ने इस प्रथा को ख़त्म कर दिया है. मुतुवान समुदाय की युवा पीढ़ी को इसके बारे में पता तक नहीं है.

इस प्रथा पर अब एक शॉर्ट फ़िल्म बनाई गई है. ‘मुतुवान कल्याणम’ फिल्म निर्माता भरतबाला के वर्चुअल भारत सीरीज़ का हिस्सा है. इसे कोच्चि स्थित शॉन सेबैस्टियन ने डायरेक्ट किया है.

मुतुवान कल्याणम

निर्देशक शॉन सेबैस्टियन को इस फ़िल्म की रिसर्च के लिए काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ी. बाकि आदिवासी समुदायों की तरह ही मुतुवान आदिवासियों के इतिहास और परंपराओं के बारे में कोई लिखित जानकारी मिलना मुश्किल था.

सेबैस्टियन केरल के एरणाकुलम ज़िले के कुट्टमपुझा पंचायत पहुंचे, जहां उनकी मुलाक़ात मुतुवान बुज़ुर्गों से हुई. इन बुज़ुर्गों से उन्हें पता चला कि ‘पेण्णेडुप्पु’ का रिवाज़ अब चलन में नहीं है, लेकिन उन बुज़ुर्गों में से कई की शादी ऐसे ही हुई थी.

इसी को दर्शाते हुए शॉन सेबैस्टियन ने युवा पीढ़ी के एक दम्पत्ति के साथ इस रिवाज़ को फ़िल्माया है.

‘मुतुवान कल्याणम’ YouTube पर उपलब्ध है

समय के साथ मुतुवान आदिवासियों की जीवनशैली में काफ़ी बदलाव आए हैं. और वो जीने के अपने पुराने तरीक़ों को भूल चुके हैं. आधुनिक दुनिया का असर इस समुदाय पर ऐसा है कि इसकी कुछ कुप्रथाओं से भी वो बच नहीं पाए हैं.

मुतुवान समुदाय में अब शादी करते वक़्त सोना भी दिया जाता है, और दहेज में दूसरी चीज़ें भी. अतीत की सिंपल शादियां अब मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज की तरह ही महंगी और दिखावे वाली बन गई हैं. 

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