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आदिवासियों के ख़िलाफ़ बढ़ रहा है अपराध, मध्य प्रदेश में हालात सबसे ख़राब

देश के आदिवासियों पर पिछले एक साल में अपराध बढ़ा है. पिछले साल देशभर में आदिवासियों के ख़िलाफ़ अपराध के 8272 मामले सामने आए, जो इससे पिछले साल की तुलना में 9.3 प्रतिशत ज़्यादा है.

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों में यह बात सामने आई है. आंकड़ों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों के ख़िलाफ़ भी पिछले एक साल में हर 10 मिनट में कोई अपराध हुआ है. 2020 में ऐसे कुल 50,291 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 की तुलना में 9.4% ज़्यादा है.

आदिवासियों और दलितों के खिलाफ़ अपराधों में बढ़ोत्तरी देश में बाकि अपराधों के घटते ट्रेंड के उलट है. कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन को छोड़कर, पिछले साल बाकि अपराधों में कमी आई है.

एक और चिंता की बात जो आंकड़ों में साफ़ हो जाती है, वो यह है कि Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of) Atrocities Act के तहत दायर कई मामले अभी भी अदालत में लंबित हैं. यह उच्च जाति द्वारा किए गए अपराधों को अदालतों में अंतिम चरण तक ले जाने, और उन्हें साबित करने में आदिवासियों और दलितों के सामने आने वाली मुश्किलों की पुष्टि करता है.

एससी / एसटी अधिनियम के तहत मामलों की अदालती पेंडेंसी दर 2020 में 96.5% थी, 2019 (94%) से ज़्यादा. साल के अंत में, सीमांत जातियों और जनजातियों की रक्षा के लिए बनाए गए इस विशेष कानून के तहत 177,379 मामले लंबित थे.

इसके अलावा आंकड़ों से यह भी साफ़ होता है कि मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (ST) के लोगों के खिलाफ़ अत्याचार के सबसे ज़्यादा 2,401 मामले दर्ज किए गए हैं. 2019 में यह आंकड़ा 1,922 था जबकि 2018 में 1,868. यानि दो साल में राज्य में आदिवासी लोगों के खिलाफ अत्याचारों में 28 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.

राज्य में हालात इस साल (2021) भी सुधरते तो नज़र नहीं आ रहे हैं. पिछले दो महानों में आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार के कई मामले सामने आए हैं, जिन्होंने देशभर में आक्रोश पैदा किया है.

चाहे वो कन्हैया भील को ट्रक से बांधकर घसीटने का मामला हो, या स्कूल से लौट रही आदिवासी लड़की की गला काटकर हत्या.

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