कोविड 19 से बचने के लिए फ़िलहाल वैक्सीन ही एक मात्र उपाय है. लेकिन फ़िलहाल देश में इतनी वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं है कि 18 साल से उपर की उम्र के सभी लोगों को टीका दिया जा सके.
इस हालत में लगातार यह कहा जा रहा है कि आदिवासी वैक्सीन लगवाना नहीं चाहते हैं. यह सच तो है पर शायद पूरा सच नहीं है.
जिस तरह का भ्रम आदिवासियों में देखा गया, वैसा ही भ्रम दुनिया के बड़े बड़े देशों में देखा गया था. भारत के शहरों में भी ऐसी ही स्थिति थी.
लेकिन हालात और जागरूकता ने इस भ्रम के बावजूद लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार कर दिया है. लेकिन आदिवासी इलाक़ों के बारे में शायद यह मान लिया गया था कि यहाँ कोरोना पहुँचेगा ही नहीं.
यह समझ ग़लत थी और ग़लत ही साबित हुई. अब आदिवासी इलाक़ों से ख़बरें आ रही हैं कि वो वैक्सीन नहीं लेना चाहते हैं.
लेकिन सवाल ये है कि आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के बारे में कितना, कैसा और कब जागरूकता अभियान चलाया गया?
हमने आज कम से कम पाँच राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड के ज़मीनी हालात पर चर्चा की. इस चर्चा में यह परिणाम निकला कि सरकार ने आदिवासी इलाक़ों को अभी तो कम से कम राम भरोसे ही छोड़ा हुआ है.