भारत में कुल आबादी में से लगभग 10 प्रतिशत आदिवासी हैं. लेकिन देश के आदिवासियों के लिए अपनी अलग पहचान हमेशा एक बड़ा मसला रहा है. सबसे पहला मसला तो यही रहा कि आदिवासियों को आदिवासी ही क्यों ना पुकारा जाए. संविधान सभा में हुई बहस के बाद यह तय किया गया गया कि आदिवासियों को जनजाति कह कर पुकारा जाएगा. दूसरा मसला आदिवासियों की धार्मिक पहचान से जुड़ा है. देश के कई इलाक़ों में आदिवासियों में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार हुआ है. लेकिन जिन आदिवासियों ने दूसरे किसी धर्म को नहीं अपनाया और आदिवासी परंपराओं से ही जीते रहे हैं, उन्हें देश की जनगणना में हिंदू धर्म मानने वालों के तौर पर ही गिन लिया जाता है.
आदिवासियों पर ज़बरदस्ती हिंदू पहचान थोपे जाने का आदिवासी समूह विरोध करते हैं. देश के अलग अलग इलाक़ों में आदिवासियों के लिए एक अलग धार्मिक पहचान की माँग उठती रही है. लेकिन झारखंड में सरना धर्म की माँग ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है. इस माँग के राजनीतिक पहलू पर काफ़ी चर्चा हुई है. लेकिन क्या आदिवासियों की एक अलग धार्मिक पहचान संभव है? क्या देश भर के आदिवासियों को सरना धर्म मंज़ूर होगा? सबसे बड़ा सवाल कि क्या आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक पहचान के दावे के पक्ष में दार्शनिक तर्क दिया जा सकता है? इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश में मैं भी भारत का यह विशेष एपिसोड है.