” जब कोई गायक हमारे स्टूडियो में आता है, तो पहले हम उनकी प्रैक्टिस कराते हैं. हम उनसे उनके गीत के बोल पूछते हैं, फिर पहले से बनाई गई रिदम पर उस गीत को रखते हैं, जब गायक रिदम में गाता है तो हम तुरंत ही धुन पकड़ लेते हैं.” मुकाती मोरे कहते हैं.
वो बताते हैं कि उनके स्टूडियो में कम से कम 3-4 गाने रोज़ रिकॉर्ड होते हैं. इन गानों की मिक्सिंग वो ख़ुद ही करते हैं. वो कहते हैं, “यह जो सॉफ़्टवेयर हम रिकॉर्डिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं, हमने ख़ुद ही डाउनलोड किया है. इसको इस्तेमाल करना भी इंटरनेट से सीखा है. पुराने स्टूडियो वाले इसके 20-25 हज़ार रूपए तक माँगते थे.”
शांतिलाल अहिरे जो यहाँ पर अपना एक गीत रिकॉर्ड करने के लिए आए हैं कहते हैं,”पहले हम एक बैंड के लिए गाते थे, यहाँ गाँवों में बैंड में दो भोगें (लाउड स्पीकर) होते थे. फिर धीरे धीरे हमने अपने गीतों की रिकॉर्डिंग पर ध्यान दिया, पब्लिक का रिस्पॉंस भी अच्छा मिला.”
“म्यूज़िक वीडियो बनाने के लिए एक बड़ी टीम लगती है, लोकेशन हंटिग के लिए लड़कों से लेकर डांसर, गीत लिखने वाले, कंपोज़र, सेट डिज़ाइनर जैसे बहुत से लोग लगते हैं. हम अभी सीख रहे हैं. धीरे धीरे यह इंडस्ट्री बन रही है.” सचिन आर्य ने हम से कहा था.
मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले में अपनी भाषा बोली की म्यूज़िक इंडस्ट्री बनाने में जुटे कुछ लोगों से बातचीत के ये कुछ छोटे छोटे हिस्से हैं.
आदिवासी बहुल इस ज़िले में ही नहीं बल्कि झाबुआ, अलिराजपुर, खरगोन में भी आदिवासी लड़के लड़कियाँ इस काम में जुटे हुए हैं.
सचिन आर्य जो एक छोटे से आदिवासी गाँव से हैं, इस इंडस्ट्री की ज़रूरतों और चुनौतियों दोनों से ही वाक़िफ़ नज़र आते हैं. वो जब बात करते हैं तो उनकी बात में आत्मविश्वास भरा होता है.
वो बताते हैं कि किसी म्यूज़िक वीडियो में शामिल होने की इच्छा रखने वाले को बाक़ायदा ऑडिशन देना पड़ता है. इन कलाकारों को अपनी कुछ वीडियो क्लिप शूट करके भेजनी पड़ती है.
उन्होंने यह भी बताया कि इस इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोग आदिवासी हैं. कुछ लोग कैमरा और दूसरी तकनीक सीख रहे हैं तो स्थानीय लड़के लोकेशन हंटिग और सेट डिज़ाइन का काम करते हैं.
मुकाती मोरे दस वर्ग मीटर की दुकान के पिछले आधे हिस्से में स्टूडियो चलाते हैं. जहां उन्होंने अपना पूरा सेटअप तैयार किया है.
मुकाती का स्टूडिया साइज़ में छोटा है और यहाँ का पूरा सेटअप आपको जुगाड़ ज़्यादा नज़र आएगा. लेकिन जब आप मुकाती की कहानी सुनते हैं कि कैसे उन्होंने ऑनलाइन अपनी लगन से सब कुछ सीखा और यह सेटअप बनाया है, तो आपका मन उनको शाबाशी देता है.
हमने इन आदिवासी कलाकारों के साथ एक पूरा दिन बिताया, और इस भरोसे के साथ लौटे कि बेशक इनका रास्ता चुनौती पूर्ण है, लेकिन कामयाबी इन्हें मिलेगी ज़रूर.
सचिन आर्य ने चलते चलते हमसे कहा था,”बहुत दूर जाना है अभी, अभी तो हम खड़े हो रहे हैं, टाइम लगेगा हम जानते हैं, पर कोई दिक़्क़त नहीं!”