झाबुआ भील आदिवासियों का गढ़ है. यहाँ के भील आदिवासी मोटे तौर पर खेती किसानी करते हैं. सीधे स्वभाव के भीलों की ज़िंदगी आसान नहीं है. यहाँ की पठारी ढलानों पर इन आदिवासियों के खेत हैं. इन खेतों में बारिश के भरोसे ये आदिवासी खेती करते हैं.
भील आदिवासियों में ज़्यादातर परिवार छोटे किसान और खेत मज़दूर हैं.
झाबुआ देश के सबसे पिछड़े ज़िलों में शुमार है. शिक्षा, स्वास्थ्य या फिर दूसरी सुविधाओं का मामला हो, झाबुआ हर मामले में पिछड़ा है.
लेकिन झाबुआ एक मामले में आगे है, वो है भीलों की ज़िंदादिली. इन्हीं ज़िंदादिल भीलों के एक गाँव में हमने झाबुआ का मशहूर कड़कनाथ यानि एक ख़ास प्रजाति का काला मुर्ग़ा पकाया और खाया.