गुजरात के आदिवासी इलाक़ों से एक हैरान और परेशान करने वाली ख़बर आई है. इस ख़बर के अनुसार मध्य गुजरात के पंचमहल और दाहोद ज़िले में कम से कम 10 लड़के लड़कियों ने आत्महत्या की कोशिश की है.
यह ख़बर हैरान-परेशान करने वाली इसलिए है कि आदिवासी समुदायों में आत्महत्या का विचार ही नहीं पाया जाता है. आदिवासी समुदायों में आत्महत्या की घटना बेहद कम होती है.
पुलिस की जाँच में यह पाया गया है कि पिछले 6 महीने की ये सभी घटनाएँ प्रेम प्रसंग से जुड़ी हुई हैं. अब यह अपने आप में बेहद परेशान करने वाला तथ्य है.
क्योंकि आदिवासी समाज में प्रेम को बिलकुल भी बुरा नहीं माना जाता है. बल्कि मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज की तुलना में आदिवासी समुदाय में प्रेम एक जीवन का एक सामान्य हिस्सा है.
अगर गुजरात के आदिवासी समुदायों में नौजवान प्रेमी आत्महत्या की कोशिश करते हैं तो यह आदिवासी जीवन मूल्यों के विपरीत है.

आदिवासी समुदायों में प्रेम और अपने जीवन साथी चुनना ही जीने का सामान्य तरीक़ा है. बल्कि आदिवासियों में बाक़ायदा सामाजिक संस्थाएँ मिलती हैं जहां लड़के लड़कियों को प्रेम और सेक्स की शिक्षा दी जाती थी.
गोंड समुदाय भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है. इस समुदाय की गोटुल व्यवस्था ऐसी ही एक सामाजिक संस्था रही है.
यहाँ पर समाज की नई पीढ़ी को आर्थिक गतिविधियों की ट्रेनिंग के साथ साथ गोंड समुदाय के जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती थी.
देश के अन्य आदिवासी समुदायों में भी इस तरह की सामाजिक व्यवस्था मिलती है. पूर्वोत्तर राज्यों के कई आदिवासी समुदायों में समाज ने इस तरह की व्यवस्था की है जहां लड़के लड़कियों को अपने मनपसंद जीवन साथी के साथ लिव इन का समय दिया जाता है.
इस दौरान अगर लड़के लड़की को लगता है कि वो प्रेम से साथ जीवन बिता सकते हैं तो उनकी शादी हो जाती है.
शादी ब्याह के मामले में भी आदिवासी समुदायों में ज़्यादातर प्रगतिशील तरीक़ा मिलता है. मध्य गुजरात के जिन दो ज़िलों से यह ख़बर आई है कि वहाँ पर कम से कम 5 प्रेमी युगल ने आत्महत्या का प्रयास किया है, वहाँ भील आदिवासी आबादी अधिक है.

मैं भी भारत की टीम को इन इलाक़ों और इसके अलावा मध्य प्रदेश के भील आदिवासी बहुल ज़िलों में घूमने का मौक़ा मिला है. इस दौरान इस समाज के जीवन मूल्यों और सामाजिक व्यवस्था को भी हमें देखने और कुछ हद तक समझने का मौक़ा मिला है.
भील समुदाय में भी हमने पाया है कि प्रेम को बुरी नज़र से नहीं देखा जाता है. बल्कि इस समुदाय में प्रेम सुप्रीम है. इस समुदाय में अक्सर ही प्रेम विवाह होते हैं.
ब्याह शादी की जो व्यवस्था है उसमें सबसे अधिक लोकप्रिय प्रेम विवाह ही है, जिसे अलग अलग इलाक़ों में अलग अलग नाम से जाना जाता है.
भील समुदाय के भगोरिया मेले के बारे में किसने नहीं सुना होगा. इस मेले का ज़िक्र आमतौर पर प्रेम और प्रेम विवाह के सिलसिले में ही होता है.
भील आदिवासियों में लड़का अपनी प्रेमिका को बिना ब्याह के ही अपने घर ला सकता है. इसके बाद दोनों परिवारों के बीच बातचीत होती है और फिर शादी की रस्म पूरी होती है.
मध्य प्रदेश के झाबुआ, बड़वानी और खरगोन के हाल ही के दौरे में हमने भील आदिवासियों में प्रेम और शादी के बारे में विस्तार से लोगों से बात की थी.

इस दौरान हमने जो देखा समझा उसके आधार पर आदिवासी समुदाय में आ रहे कुछ बदलावों को भी महसूस किया था.
मसलन ब्राइड प्राइस और कम उम्र में शादी दो ऐसे मसले हैं जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और भील समुदाय के लिए समस्या भी पैदा कर रहे हैं. हमें यह लगा था कि भील समुदाय को इस मसले पर सोच विचार करना चाहिए.
लेकिन गुजरात, मध्य प्रदेश हो या फिर दक्षिण में तमिल नाडु या आंध्रप्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश हो या फिर नागालैंड, यहाँ तक की अंडमान के जारवा या ओंग हों, हमें कहीं भी कोई आदिवासी समुदाय नहीं मिला जहां प्रेम या प्रेम विवाह को बुरा माना जाता है. बल्कि यहाँ हमने पाया कि प्रेम का जीवन में विशेष स्थान है.
यह बात सही है कि ज़्यादातर आदिवासी समुदायों में अपने ही कुल या गोत्र में शादी करने की अनुमति नहीं होती है. इसके अलावा समुदाय के बाहर शादी ब्याह को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है.
लेकिन अगर कोई ऐसा कर लेता है तो समुदाय ऐसे मामलों में लड़के या लड़की की हत्या नहीं करता है.
प्रेम या प्रेम विवाह को समुदाय और परिवार के सम्मान का सवाल बना कर अपने ही बच्चों की हत्या की परिपाटी आदिवासी समुदाय में नहीं है. यह बात ज़रूर है कि कई मामलों में समुदाय के बाहर शादी करने वाले जोड़े को गाँव छोड़ना पड़ता है.
हमने तो यहाँ तक पाया है कि कई आदिवासी समुदाय में लड़की को यह हक़ होता है कि वो अपने प्रेमी के घर चली आए और फिर अपने घर लौटने से मना कर दे. इसके बाद परिवार को इस लड़की को अपने प्रेमी से शादी की अनुमति दे दी जाती है.

फिर आदिवासी समुदाय से इस तरह की ख़बर क्यों मिल रही है कि प्रेमी और प्रेमिका ने आत्महत्या की कोशिश की है. क्या यह कथित आधुनिक समाज के मूल्यों का असर आदिवासी समुदायों पर आ रहा है.
इस मसले पर शायद व्यापक शोध नहीं हुआ है. लेकिन जब हम हाल ही में मध्य प्रदेश के निमाड़ में घूम कर आदिवासियों से मिल रहे थे तो हमने यह महसूस किया था. हम यहाँ पर कुछ नौजवान आदिवासी कलाकारों से मिले थे.
ये कलाकार अपने लोकगीतों से ज़्यादा प्रेम गीतों की रिकॉर्डिंग करते हैं. यहाँ के एक स्टूडियो में हमें बताया गया कि अब बेवफ़ाई के गीत सबसे अधिक लिखे और गाए जा रहे हैं. ये गीत सबसे ज़्यादा शेयर भी होते हैं.
इस बात को थोड़ा सा बारीक नज़र से देखेंगे तो लड़की की ना, अब आदिवासी समुदाय में भी बेवफ़ाई की तरह से देखी जा रही है. इसे प्रेम में नाकामी माना जा रहा है.
इन वीडियो में प्रेमी को शराब के नशे में डूबा दिखाया जाता है, वो अपनी बेवफ़ा प्रेमिका के लिए ख़ुद को मिटाने के रास्ते पर चल पड़ता है.
आदिवासी समुदाय के लोकगीतों या फिर जीने के अंदाज़ में वफ़ा की ज़िम्मेदारी या बेवफ़ाई का इलज़ाम लड़की पर लगाने का रिवाज कभी नहीं था.
आदिवासी समुदाय को यह समझना होगा कि आधुनिक समाज में प्रेम के लिए अपनी जान देना या जान ले लेना जीवन मूल्य नहीं, एक अपराधिक प्रवृति है.