मध्य प्रदेश के खरगोन ज़िले में आदिवासी गाँवों में घूमने का सिलसिला कई दिन चला. हम यहाँ जुलाई महीने के दूसरे सप्ताह में पहुँचे थे. हमें उम्मीद थी कि इस समय तक आदिवासी अपने खेतों की बुवाई से निपट चुका होगा.
लेकिन बारिश में देरी की वजह से लोग अभी भी बुवाई के काम से फ़ारिग नहीं हुए थे. चंपालाल बडोले से भी हमारी मुलाक़ात एक खेत में ही हुई थी. वो अपने खेत के काम में जुटे थे, लेकिन हमसे बातचीत का कुछ समय उन्होंने निकाल ही लिया.
चंपालाल ने बीएससी की पढ़ाई की है. लेकिन उनका मन खेती किसानी और गीत-संगीत में ही बसता है. उनके गीतों में आपको आदिवासी जीवनशैली और पहचान पर गर्व की भावना मिलेगी. वहीं प्रेम गीतों में आदिवासी जीवन का खुलापन और बेपरवाही भी मिल जाएगी.
दूसरी तरफ़ आदिवासियों की मजबूरियाँ और संघर्ष भी आपको उनके गीतों में नज़र आएगा. वो जल, जंगल और ज़मीन पर आदिवासी अधिकार के प्रति भी सचेत हैं, तो मज़दूरी के लिए घर पर ताला लगाकर निकल जाने वाले आदिवासी के संघर्ष को भी गीतों में उठाते हैं.