महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में जिला प्रशासन ने 50 आदिवासी आवासीय और ज़िला परिषद स्कूलों के छात्रों के लिए एक ख़ास योजना शुरु की है. इसके तहत देशभर से युवा शिक्षकों को “एजुकेशन फेलो” के रूप में नियुक्त किया गया है.
‘एजुकेट गढ़चिरौली फैलोशिप’ नाम की इस योजना को नीति आयोग से आर्थिक समर्थन मिल रहा है. प्रशासन ने इस नक्सल प्रभावित ज़िले के दूरदराज़ के इलाकों में स्थित स्कूलों में एक साल के लिए रहने के लिए प्रमुख यूनिवर्सिटीज़ के ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट युवाओं से आवेदन आमंत्रित किए हैं.
यह युवा न सिर्फ़ आठवीं से दसवीं कक्षा के छात्रों को अलग-अलग सबजेक्ट पढ़ाएंगे, बल्कि “स्कूलों को उत्कृष्टता केंद्रों में बदलने” के लिए सपोर्ट सिस्टम के रूप में भी काम करेंगे.
नीति आयोग ने इस योजना के लिए 1 करोड़ रुपये दिए हैं. देश भर से प्राप्त 200 से ज़्यादा आवेदनों में से, जिला प्रशासन ने 40 उम्मीदवारों का चयन किया है. उम्मीदवारों में आईआईटी और दूसरे प्रमुख संस्थानों के इंजीनियरिंग ग्रैजुएट भी हैं.
इसके अलावा दिल्ली यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, एमिटी, और अज़ीम प्रेमजी जैसे प्रमुख यूनिवर्सिटीज़ से पासआउट हुए युवा भी हैं. यह लोग उन जगहों पर एक साल तक रहेंगे जहां स्कूल – 38 आवासीय स्कूल और 12 जिला परिषद स्कूल स्थित हैं.
चयन की प्रक्रिया ख़त्म हो चुकी है, लेकिन कोविड-19 के चलते यह साफ़ नहीं है कि यह कब तक पढ़ाना शुरु कर सकेंगे. इन युवाओं को आवास और यात्रा खर्च के अलावा 30,000 रुपये प्रति महीने भी दिया जाएगा.
इस योजना की शुरुआत छात्रों से चर्चा के बाद ही हुई. इन स्कूलों के छात्रों के लिए एसएससी और एचएससी परीक्षाओं को पास करना मुश्किल होता है. वो इसके पीछे शिक्षकों की कमी को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
ऐसी दुर्गम जगहों पर वेकेंसी भरने के लिए अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति बेहद मुश्किल है. इसीलिए फ़ोलोशिप का रास्ता अपनाया जा रहा है.
उम्मीद की जा रही है कि यह फेलो न सिर्फ़ सबजेक्ट पढ़ाएंगे, बल्कि छात्रों को बाहरी दुनिया के बारे में भी बताएंगे, जिसके बारे में वो बहुत कम जानते हैं. वो छात्रों को जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित भी कर सकते हैं.
प्रशासन कहता है कि अगर हर स्कूल से 50 अच्छे छात्र भी बाहर आ सकें, तो इस योजना को सफ़ल ही माना जाएगा.