कोविड और लॉक डाउन ने आदिवासी आबादी से छीना निवाला

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कोविड की पहली लहर में लॉक। डाउन की वजह से जब लाखों मज़दूर अपने गाँवों को लौटे तो इनमें बड़ी तादाद आदिवासियों की भी थी. इसके अलावा लॉक डाउन की वजह से आदिवासी इलाक़ों में लगने वाले साप्ताहिक हाट भी बंद पड़े रहे.

इन साप्ताहिक हाटों में आदिवासी अपनी उपज और वन उत्पाद ला कर बेचते हैं. आदिवासी भारत की आर्थिक गतिविधियों में साप्ताहिक हाट एक महत्वपूर्ण गतिविधि है. इसके अलावा सरकार की तरफ़ से की जाने वाली वन उत्पाद की ख़रीद भी ठप्प पड़ गई.

विशेष रूप से पिछड़े आदिवासी समुदायों पर मार ज़्यादा पड़ी थी. क्योंकि ये आदिवासी समुदाय पहले ही ग़रीबी रेखा के नीचे जीते हैं. लॉक डाउन ने इन समुदायों में कुपोषण को और बढ़ा दिया है.

अब कोविड की दूसरी लहर जब ग्रामीण और आदिवासी इलाक़ों में पहुँच चुकी है तो हालात और भी ख़राब हुए हैं. इस मसले पर हमने जेएनयू के प्रोफ़ेसर विकास रावल से बातचीत की. विकास रावल आदिवासी अधिकार मंच से भी जुड़े हुए हैं.

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