HomeAdivasi Dailyआदिवासी झंडा फ़हराने की मांग के बाद तनाव, ग्रामीणों को कुर्सी ना...

आदिवासी झंडा फ़हराने की मांग के बाद तनाव, ग्रामीणों को कुर्सी ना दिए जाने पर विधायक भी फ़र्श पर बैठीं

आंध्र प्रदेश आदिवासी संयुक्त कार्रवाई समिति के जिला संयोजक रामाराव डोरा ने आरोप लगाया कि इस अपमान के बाद बहुत से लोग आईटीडीए कार्यालय नहीं जाना चाहते हैं. जब नेता ही कार्यालय नहीं आ रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से आम लोग भी आने से हिचकिचाएंगे.

आंध्र प्रदेश में आदिवासी नेताओं और रामपचोदावरम एकीकृत विकास एजेंसी (ITDA) के परियोजना अधिकारी (PO) के बीच हालिया टकराव ने कथित तौर पर प्रशासन के साथ दुश्मनी बढ़ा दी है. आदिवासियों का आरोप है कि वो घटना के बाद किसी भी प्रशासनिक कार्य के संबंध में आईटीडीए के कार्यालय से संपर्क करने से हिचकिचा रहे हैं.

आदिवासी (गिरिजन) सांस्कृतिक और कल्याण संघ के जिला अध्यक्ष बोजी रेड्डी कहते हैं, “पहले हम नियमित रूप से कार्यालय का दौरा करते थे. सरकारी कल्याण योजनाओं और दूसरे भूमि संबंधी मुद्दों के बारे में पूछताछ करने जाते थे. लेकिन जब से टकराव हुआ है हमने कार्यालय में विश्वास खो दिया है और वहाँ जाने बच रहे हैं.”

हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि वो जल्द ही परियोजना अधिकारी से मिलेंगे. बोजी रेड्डी कहते हैं, “भले ही अधिकारियों पर से हमारा विश्वास उठ गया हो लेकिन हम जल्द ही उनसे मिलेंगे. साथ ही कंगला श्रीनिवासुलु के खिलाफ मामले को रद्द करने की अपनी मांग को भी रखेंगे.”

कंगला श्रीनिवासुलु एक शिक्षक और आदिवासी कर्मचारी कल्याण और सांस्कृतिक संघ की जिला अध्यक्ष हैं. कंगला पर तहसीलदार के. लक्ष्मी कल्याणी की शिकायत के आधार पर रामपचोदवरम पुलिस ने 11 अगस्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 448 (घर-अतिचार के लिए सजा) और 186 (एक लोक सेवक को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकना) के तहत मामला दर्ज किया था.

दरअसल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आईटीडीए कार्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कंगला श्रीनिवासुलु ने कथित तौर पर परिसर में एक हरा झंडा (आदिवासियों का झंडा) फहराने की अपील की और एक सख्त कार्यान्वयन की भी मांग की थी.

आदिवासियों का आरोप है कि आईटीडीए के पीओ प्रवीण आदित्य के इशारे पर श्रीनिवासुलु के खिलाफ कार्रवाई की गई. 

श्रीनिवासुलु के खिलाफ जो कार्रवाई की गई उसका विरोध करते हुए छात्र संघों सहित कई आदिवासी संगठनों के कम से कम 300 लोगों ने आईटीडीए कार्यालय की घेराबंदी कर दी थी.

जैसे ही विरोध तेज हुआ पीओ ने प्रदर्शनकारी नेताओं को अपने कार्यालय में बातचीत के लिए बुलाया. हालांकि विधायक वंथला राजेश्वरी सहित नेताओं को फर्श पर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उनके लिए सिफ दो कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी.

आंध्र प्रदेश आदिवासी संयुक्त कार्रवाई समिति के जिला संयोजक रामाराव डोरा ने आरोप लगाया कि इस अपमान के बाद बहुत से लोग आईटीडीए कार्यालय नहीं जाना चाहते हैं. जब नेता ही कार्यालय नहीं आ रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से आम लोग भी आने से हिचकिचाएंगे.

घटना को याद करते हुए रामाराव कहते हैं, “हम परियोजना अधिकारी से मिलने के लिए बिल्कुल भी उत्सुक नहीं थे. लेकिन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने जोर देकर कहा कि हम उनसे मिलें. हम करीब 20 लोग थे. जब हम ऑफिस गए तो हमारे लिए सिर्फ दो कुर्सियाँ थीं. हमने पूर्व विधायक को कुर्सी पर बैठने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया और हमारे साथ फर्श पर बैठ गई. बात करने के नाम पर यह हमारा अपमान था.”

उन्होंने आरोप लगाया, “कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किए जाने का कोई सवाल ही नहीं था. ITDA का ऑफिस बहुत बड़ा है और सभी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करके व्यवस्था की जा सकती थी. लेकिन हमें जानबूझकर अपमानित करने के लिए पर्याप्त कुर्सी के बिना एक छोटी सी जगह पर आमंत्रित किया गया था.”

रामाराव का दावा है कि बातचीत के दौरान भी अधिकारी प्रवीण आदित्य ने उनके साथ कथित तौर पर अभद्र व्यवहार किया. उन्होंने कहा, “जब हमने पूछा कि अधिकारी ने अनुसूचित क्षेत्र की भूमि को गैर-आदिवासियों द्वारा अतिक्रमण से बचाने के लिए क्या उपाय किए हैं तो उन्होंने हमें सूचना के अधिकार (RTI) याचिकाओं के माध्यम से उनके बारे में पता लगाने के लिए कहा.”

इस घटना को आदिवासियों के स्वाभिमान पर हमला करार देते हुए उन्होंने कहा, “अगर अधिकारी शिक्षित लोगों के प्रति इस तरह से व्यवहार करता है जो कुछ हद तक राजनीतिक रूप से जागरूक हैं तो मुझे आश्चर्य है कि वह वंचितों के प्रति कैसा व्यवहार करते होंगे. यही कारण है कि हम चाहते हैं कि आयोग उनके खिलाफ कार्रवाई करे.”

इस बीच आंध्र प्रदेश आदिवासी संयुक्त कार्रवाई समिति ने पीओ के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए 29 अगस्त को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को एक पत्र लिखा. जेएसी ने आयोग से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम और केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की मांग की.

आंध्र प्रदेश अनुसूचित क्षेत्र भूमि हस्तांतरण विनियमन अधिनियम 1959, जो गैर-आदिवासियों को अनुसूचित क्षेत्र में भूमि के मालिक होने से रोकता है. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments