झारखंड की राजधानी रांची के अरगोड़ा में सैकड़ों आदिवासी ग्रामीणों ने सोमवार को सर्किल ऑफिस का घेराव किया और सर्किल ऑफिसर पर सेना को अवैध रूप से भूमि आवंटित करने का आरोप लगाया. ओऔन
उन्होंने अनाधिकृत भूमि आवंटन को तत्काल रोकने की मांग की और भूमि विवादों को सुलझाने के लिए प्रशासन, सेना और ग्रामीणों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय वार्ता की मांग की.
प्रदर्शनकारियों ने सेना और स्थानीय किसानों के बीच लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवाद को उजागर किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दौर से चला आ रहा है.
उनके मुताबिक, नौ मौजों में लगभग 1,086.87 एकड़ जमीन उनके पूर्वजों ने फसल मुआवजे के बदले तीन साल के लिए सेना को सौंप दी थी.
बिरसा मुंडा एयरपोर्ट विस्थापित मोर्चा के अध्यक्ष अजीत उरांव, जिनके बैनर तले ग्रामीणों ने सर्किल ऑफिस का घेराव किया था.
उन्होंने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद सेना ने ग्रामीणों को जमीन नहीं लौटाई और उसे एयरपोर्ट अधिकारियों को सौंप दिया. अब सेना नौ में से केवल तीन मौजा में उतनी ही जमीन पर स्वामित्व का दावा कर रही है, जिससे ग्रामीणों की आजीविका और संस्कृति को ख़तरा पैदा हो रहा है. वे हमें अपनी जमीन पर खेती करने या घर बनाने से रोकते हैं, जबकि जमीन पर ग्रामीणों का स्वामित्व है.”
ओरांव ने कहा, “हम वहां सर्कल ऑफिस से यह स्पष्टीकरण लेने के लिए इकट्ठा हुए थे कि सेना किन दस्तावेजों के आधार पर हमारी जमीन पर अपना अधिकार जता रही है.”
हालांकि, सर्किल अधिकारी ने आदिवासियों से मुलाकात नहीं की.
यह मुद्दा पिछले कई दशकों से बना हुआ है लेकिन इसके बावजूद ग्रामीणों को इसका कोई समाधान नहीं मिला है.
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि सेना स्वघोषित भूमि दस्तावेज के आधार पर भूमि पर अपना अधिकार जता रही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अरगोड़ा के सर्किल ऑफिसर सुमन सौरभ ने कहा कि जमीन पर सेना का दावा जायज है और उनके पास जमीन के सत्यापित दस्तावेज हैं.
सर्किल ऑफिसर ने कहा, “गांव वालों के पूर्वजों को जमीन सेना को सौंपने के लिए मुआवजा मिला था लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें भी मुआवजा मिलेगा. सेना ने दावा की गई भूमि के सत्यापित दस्तावेज साथ लाए हैं.”