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आदिवासी महिला बच्चे को अस्पताल में जन्म देने के लिए 20 किमी पैदल चली

अस्पताल से छुट्टी के बाद, नागम्मा को अपनी वापसी की यात्रा के लिए भी उसी रास्ते जाना पड़ा, थोड़ा एम्बुलेंस में, और फिर 10 किलोमीटर पैदल. इस बार गोद में अपने नवजात शिशु के साथ.

तेलंगाना के आदिलाबाद की एक गर्भवती आदिवासी महिला को सरकारी अस्पताल में जन्म देने जाने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. इस घटना ने एक बार फिर तेलंगाना के आदिवासी (एजेंसी) इलाकों में मोटर योग्य सड़कों की कमी को सामने ला दिया है.

गर्भवती आदिवासी महिला, नागम्मा की यह पैदल यात्रा कोई कोई अकेली घटना नहीं है. इससे पहले भी आदिलाबाद के एजेंसी इलाकों में मोटर योग्य सड़कों और यहां की नदी नालों पर पुलों की कमी के चलते बीमार और बुजुर्ग आदिवासियों के मजबूरी में घंटों पैदल चलने को खबरें आए दिन आती रहती हैं.

गोवेना नयापुगुडा गाँव की रहने वाली नागम्मा को 28 अप्रैल को अपने घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर बालनपुर पहुँचने के लिए दो छोटी पहाड़ियों और खाईयों को पार करना पड़ा.

वहाँ से, उन्हें एक एम्बुलेंस मिल गई, जो उसे निर्मल सरकारी अस्पताल ले गई. अस्पताल में उसने एक बच्ची को जन्म दिया.

लेकिन अस्पताल से छुट्टी के बाद, नागम्मा को अपनी वापसी की यात्रा के लिए भी उसी रास्ते जाना पड़ा, थोड़ा एम्बुलेंस में, और फिर 10 किलोमीटर पैदल. इस बार गोद में अपने नवजात शिशु के साथ.

उन्होंने यह यात्रा अपनी एक करीबी रिश्तेदार के साथ को, और आखिरकार सुरक्षित घर पहुंचने पर उसे कुछ आराम मिला.

इलाके की “सड़कें” इतनी खराब स्थिति में हैं कि इनपर दोपहिया वाहन चलन भी लगभग नामुमकिन है. सड़क, जिसे पिछले साल ही ‘पुलिसेलु मीकोसम’ कार्यक्रम के तहत बिछाया गया था, पिछले साल के बारिश के मौसम में ही बुरी तरह से खराब हो गई, और अब इस्तेमाल करने लायक नहीं है.

पिछले साल अगस्त में, एक और आदिवासी महिला, 4कोडपा राजूबाई, आदिलाबाद जिले के गाडीगुडा में अपने घर से अपने परिजनों के कंधों पर एक अस्थायी स्ट्रेचर पर अस्पताल ले जाई जा रही थी, और रास्ते में ही तड़प-तड़प कर उसकी मौत हो गई.

आदिलाबाद ग्रामीण मंडल के मंगली गांव में लोगों को ठीक -ठाक सड़क तक पहुंचने के लिए लगभग 3 किमी पैदल चलना पड़ता है. संयोग से, मंगली पिछले साल तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन द्वारा गोद लिए गए गांवों में से एक है.

सिर्फ़ वादे, काम कुछ नहीं

इलाके के आदिवासियों का कहना है कि राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर ने पहले घोषणा की थी कि आदिवासी गांवों और बस्तियों को ग्राम पंचायतों के रूप में विकसित किया जाएगा. इसके पीछे की सोच यह थी कि इससे मंडल मुख्यालय से उनकी अच्छी कनेक्टिविटी हो जाएगी, लेकिन इस संबंध में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

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