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झारखंड: इंजीनियरिंग में ST कोटे की 1500 सीट पर 148 को दाख़िला, उसमें भी 15 ड्रॉप आउट

इस स्टडी में बताया गया है कि अगर उक्त सीटों पर 148 विद्यार्थियों ने एडमिशन ले भी लिया, तो इनमें 15 विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो ड्रॉप आउट हो जाते हैं. साथ ही 20 विद्यार्थी कोर्स की अवधि में पास नहीं हो पाते हैं.

झारखंड में अनुसूचित जनजाति  यानि आदिवासी छात्रों के लिए आरक्षित इंजीनियरिंग की सीटों के बारे में एक चौंकाने और दुखद तथ्य सामने आया है . एक अध्ययन में पाया गया है कि शिक्षण संस्थानों में आरक्षित इंजीनियरिंग की 1500 सीटों में सिर्फ 148 सीटें ही भर पाती हैं.

अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए 26 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. यानी अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए इंजीनियरिंग में कुल 1500 सीटें हैं. इतना ही नहीं कि ये सीटें ख़ाली रह जाती हैं बल्कि अनुसूचित जनजाति के जो छात्र एडमिशन लेते हैं उनमें से काफ़ी छात्र बीच में भी पढ़ाई छोड़ देते हैं. 

इस स्टडी में बताया गया है कि अगर उक्त सीटों पर 148 विद्यार्थियों ने एडमिशन ले भी लिया, तो इनमें 15 विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो ड्रॉप आउट हो जाते हैं. साथ ही 20 विद्यार्थी कोर्स की अवधि में पास नहीं हो पाते हैं.

ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ इस वर्ष का हाल है. बल्कि लगातार पिछले तीन साल से राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों की यही स्थिति है. दरअसल, झारखंड यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग कर यह एक रिसर्च की गई है.

यह अध्ययन आरवीएस इंजीनियरिंग कॉलेज के डीन डॉ राजेश तिवारी व बीआइटी सिंदरी के कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट के प्रो. अभय ज्ञान पी. कुजूर ने की है. इस रिसर्च में यह बात भी सामने आयी कि अगर एसटी विद्यार्थी कोर्स को पूरा भी कर लेते हैं, तो इसमें सिर्फ 14 से 15% विद्यार्थियों को ही नौकरी मिल पाती है.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि तुलनात्मक रूप से दलित यानि अनुसूचित जाति के छात्रों की स्थिति इस मामले में थोड़ी बेहतर है. हालाँकि इस श्रेणी में भी कोटा पूरा नहीं भर पाता है. लेकिन फिर भी आरक्षित 10 प्रतिशत सीटों में से कम से कम 9.2 प्रतिशत सीटों पर छात्रों ने दाख़िला लिया था.

राज्य के कॉलेज ही नहीं बल्कि पॉलिटेक्निक कॉलेजों का भी यही हाल है. इस सिलसिले में छपी एक ख़बर के अनुकाल राज्य के पॉलिटेक्निक कॉलेज में करीब 10,000 सीटें हैं. इसमें भी 1000 सीटें ही भर पाती है.

अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों की सीटें राज्य में सिर्फ एमबीबीएस यूजी-पीजी के साथ ही बीडीएस कोर्स के लिए भर पाती है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ इंजीनियरिंग में ही यह स्थिति है. बल्कि हायर एजुकेशन में सामान्य कोर्स यानी बीएससी, एमएससी या फिर अन्य कोर्स का भी हाल लगभग ऐसा ही है. 

इस स्टडी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के मामले में अनुसूचित जनजाति के छात्रों के पिछड़ जाने के कई कारण गिनवाए गए हैं. लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि इस तरह की रिसर्च या सर्वे गंभीरता से लिए जाने चाहिए. क्योंकि जब तक इस समस्या के सही सही कारण नहीं पता लगाए जाएँगे, समस्या का निवारण मुश्किल होगा. 

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