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पोडु भूमि: राजन्ना सिरसिला ज़िले में दो आदिवासी किसानों ने की आत्महत्या की कोशिश

दो पीड़ित किसानों के परिवारों के करीबी सूत्रों ने कहा कि बुक्या थांडा के कुछ लोगों द्वारा चल रहे सर्वेक्षण के दौरान "पोडु खेती" के तहत भूमि की सूची से उनके नाम हटाने के कथित प्रयासों से दोनों व्यथित थे.

तेलंगाना में पोडु भूमि के चल रहे सर्वेक्षण में उनके साथ हुए कथित अन्याय से परेशान दो आदिवासी किसानों ने आत्महत्या कोशिश की. यह घटना सोमवार को राजन्ना सिरसिला ज़िले के वीरनापल्ली मंडल के बुक्या थांडा के एक गांव राशीगुट्टा थांडा का है. किसानों ने कीटनाशक खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया.

सूत्रों के अनुसार, राशीगुट्टा थांडा के अलग-अलग परिवारों के दो किसानों की पहचान बाधवथ शिवराम (37) और कमला (40) के रूप में हुई है. उन्हें मंडल मुख्यालय शहर येलारेड्डीपेट के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनकी हालत स्थिर बताई गई.

कथित तौर पर सोमवार की दोपहर आदिवासी बस्ती में उनकी ‘पोडू भूमि’ के लिए पट्टा सुनिश्चित करने के लिए गांव के कुछ बुजुर्गों से मिलने के बाद कथित तौर पर कीटनाशक पी लिया.

दो पीड़ित किसानों के परिवारों के करीबी सूत्रों ने कहा कि बुक्या थांडा के कुछ लोगों द्वारा चल रहे सर्वेक्षण के दौरान “पोडु खेती” के तहत भूमि की सूची से उनके नाम हटाने के कथित प्रयासों से दोनों व्यथित थे. उनकी भूमि, उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत है.

सूत्रों ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006 के प्रावधानों के अनुसार राज्य भर के वन सीमांत गांवों में लंबे समय से लंबित पोडु भूमि के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए राज्यव्यापी अभियान के तहत ग्राम पंचायत सीमा में “पोडू भूमि” का सर्वेक्षण चल रहा है.

तेलंगाना के एजेंसी इलाक़ों से आदिवासियों और वन विभाग के बीच पोडु भूमि को लेकर झड़प की अक्सर ख़बरें आती रहती है. पिछले महीने ही भद्राद्री कोठागुडेम ज़िले के असवरोपेट मंडल के गांदलागुडेम गांव में आदिवासियों और वन अधिकारियों के बीच झड़प की खबर आई थी. राज्य में पोडु भूमि को लेकर आदिवासियों और सरकार के बीच टकराव की स्थिति लंबे समय से बनी हुई है.

पोडु भूमि मुद्दा क्या है?

पोडू खेती, जिसमें फसल उगाने के लिए जंगल की जमीन को जलाकर साफ किया जाता है, ये आदिवासियों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन है. लेकिन वन विभाग पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए इसका विरोध करता है.

वहीं इस वनों की कटाई को रोकने के लिए सरकार खेती के लिए जमीन आवंटित करके खेती करने वालों को घने जंगलों से बाहर के इलाक़े में ले जाना चाहती है. मुख्यमंत्री राव ने पिछले साल राज्य विधानसभा को आश्वासन दिया था कि सरकार वनों की रक्षा और अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए एक अभियान शुरू करेगी.

पोडु खेती सीधा आदिवासियों के भूमि अधिकारों से जुड़ी है. इस विवाद का एक और पहलू है तेलंगाना सरकार की हरिता हरम योजना, जिसके तहत राज्य के फ़ॉरेस्ट कवर को बढ़ाने की योजना है. लेकिन इसके लिए पेड़ जिस भूमि पर लगाए जाने हैं, उसपर आदिवासी अपना दावा पेश करते हैं.

सरकार ने कहा है कि दशकों से परंपरागत रूप से खेती करने वाले आदिवासी किसान अवैध अतिक्रमणकारियों के खिलाफ इस अभियान से प्रभावित नहीं होंगे. बल्कि आदिवासियों को भू-स्वामित्व के पट्टे यानि मालिकाना हक़ दिया गया है. अधिकारियों ने कहा है कि राज्य भर में आदिवासी किसानों को 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि आवंटित की गई है.

क्या है सरकार के कदम की स्थिति?

सरकार ने मुख्य सचिव सोमेश कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था जिसने पोडू किसानों से भूमि के स्वामित्व और वन क्षेत्रों के बाहर भूमि आवंटन के लिए आवेदन आमंत्रित किए. प्रक्रिया की निगरानी के लिए गांव, मंडल और जिला स्तर पर जांच समितियां गठित की गईं. हालांकि यह प्रक्रिया जल्दी ही चरमरा गई क्योंकि 7 लाख एकड़ से अधिक वन भूमि पर दावा करने वाले 1 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे.

वन मंत्री रेड्डी के अनुसार, आवेदनों की जांच करने, आदिवासियों और गैर-आदिवासियों की भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया जारी थी और उन्हें भूमि स्वामित्व दस्तावेज जारी करने में कुछ समय लगेगा.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को मूल आदिवासियों और आदिवासियों से कोई समस्या नहीं है जो हमेशा जंगलों में रहे हैं. हालांकि, गैर-आदिवासियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है. हमने लोगों को आश्वासन दिया है कि जो कोई भी पोडु खेती को छोड़कर जंगल से बाहर जाना चाहता है, उसे अतिरिक्त लाभ के साथ मुफ्त में जमीन दी जाएगी.

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