पश्चिम बंगाल के झारग्राम जिले के एक आंतरिक इलाके में बसे छोटे से आदिवासी गांव के लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं. इतना ही नहीं ग्रामीणों का कहना है कि निकट भविष्य में इसका कोई समाधान उन्हें नहीं दिखता है.
दरअसल, खैरासोल गांव के आदिवासियों को पानी लाने के लिए 3 किलोमीटर से अधिक पैदल चलना पड़ता है क्योंकि उनके गांव में एक भी ट्यूबवेल या तालाब नहीं है.
खैरासोल निवासी बाबूलाल मंडी ने न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए कहा, “चाहे पीने की बात हो या अन्य आवश्यकताओं के लिए, हम पानी को सुरक्षित रखने में समस्या का सामना कर रहे हैं. यहां तक कि अपनी प्यास बुझाने के लिए भी हमें दो बार सोचना पड़ता है.”
एक अन्य आदिवासी ग्रामीण ने आरोप लगाया कि चुनाव के दौरान तो उनसे समाधान का वादा किया जाता है लेकिन बाद में कुछ भी नहीं होता है. ग्रामीण ने कहा, “चुनाव के दौरान कई राजनीतिक दल हमारे पास आते हैं और पानी की समस्या को हल करने का वादा करते हैं. लेकिन एक बार चुनाव हो जाने के बाद कोई भी उनके वादों की परवाह नहीं करता है.”
पश्चिम बंगाल का झारग्राम जिला चारों तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है. वहां बसे खैरासोल गांव की रहने वाली एक आदिवासी महिला सौरभि मुरमुर ने एएनआई को बताया कि गांव में पानी का संकट है और इसे हल करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि समस्या इतनी गंभीर है कि ग्रामीणों को मवेशियों के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है, जिस पर उनकी आजीविका निर्भर है.
सौरभि मुरमुर ने कहा , ”पानी की समस्या से हम आए दिन जूझते हैं. हमें या तो पानी खरीदना पड़ता है या पानी लेने के लिए 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. मेरे परिवार के लिए हर दिन पानी खरीदना संभव नहीं है.”
पास के नारायणपुर गाँव के निवासी सत्य महतो ने कहा, “यहां पानी की बहुत बड़ी समस्या है. अगर पानी उपलब्ध नहीं है तो हमारे दैनिक जीवन का निर्वाह करना कठिन है. ख़ासकर पूरे गाँव के लिए ये और भी मुश्किल है.”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आदिवासी ग्रामीणों को आश्वासन दिया था कि 2024 तक पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा और आदिवासी इसका इंतजार कर रहे हैं.