झारखंड (Tribes of Jharkhand) में आदिवासी छात्र-छात्राओं के जाति प्रमाणपत्र (Caste certificate) को अस्वीकार किया जा रहा है. क्योंकि इन छात्र-छात्राओं के जाति प्रमाणपत्र में संथाल (Santhal) की जगह संताल (Santal) लिखा गया है.
केंद्र सरकार की वेबसाइट में संथाल लिखा गया है. वहीं राज्य सरकार की साइट में संताल लिखा है.
यह मामला राज्य के पोटका निर्वाचन क्षेत्र का है. पोटका क्षेत्र के एक संस्था ने आदिवासी छात्र को उसके जाति प्रमाण पत्र पर सुधार करने के लिए कहा है.
दरअसल जाति प्रमाण पत्र पर उपजाति संताल लिखे जाने के कारण इसे संस्था में स्वाीकारा नहीं गया है.
जातिप्रमाण पत्र से संबंध रखने वाले एक अधिकारी निकिता बारला ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र में संथाल हो या संताल इससे कोई दिक्क्त नहीं आनी चाहिए.
इसके अलावा उन्होंने कहा की अगर किसी छात्र को इस वजह से कोई परेशानी हो रही हो, तो उसे अलग से पत्र लिखकर दिया जाएगा. ताकि यह साबित हो सके कि उपजनजाति संताल और संथाल में कोई अंतर नहीं है.
आदिवासी समुदाय के एक नाम का उच्चारण अलग-अलग हो सकता है. इनके उच्चारणों में अंतर की वज़ह हर क्षेत्र की अपनी भाषा और बोली है.
उच्चारणों में अंतर के कारण ही इनके नाम को अलग-अलग तरीके से लिखा जाता है. मसलन संथाल समुदाय को सांथाल और संताल के नाम से भी जाना जाता है.
झारखंड के अलावा देश के अलग-अलग राज्यों में कई आदिवासी नामों के इस अंतर की वजह से कई दिक्कतों से जूझ रहे हैं.
मसलन ओडिशा के दुरवा आदिवासी अनुसूचित जनजाति दर्जें की मांग लंबे समय से कर रहे थे.
क्योंकि यह आदिवासी धुरवा नाम से छत्तीसगढ़ के एसटी लिस्ट में शामिल हैं. यहां तक की इन आदिवासियों को छत्तीसगढ़ में पीवीटीजी का दर्जा दिया गया है.
25 जुलाई को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ के 12 आदिवासी समुदायों के अलग-अलग नाम को एसटी सूची में शामिल करने के लिए बिल पास किया गया था.
उस समय पूर्व जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह कहा था कि स्पेलिंग में गलतियां या गलत उच्चारण की वज़ह से राज्य के हज़ारों आदिवासी एसटी लिस्ट से बाहर थे.
जिसकी कारण आदिवासी समुदाय से होते हुए भी उन्हें कोई भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है.