अंडमान और निकोबार प्रशासन ने हाल ही में ग्रेट निकोबार द्वीप पर एक महत्वपूर्ण सड़क परियोजना के लिए ज़मीन अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव अध्ययन (Social Impact Assessment) कराने का फैसला किया है.
इस कार्य के लिए प्रशासन ने एक सलाहकार का चयन करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसके लिए वित्तीय बोलियों के लिए आमंत्रण मांगे गए हैं.
देश के कई समाचार पत्रों में इस सिलसिले में इस बारे में ख़बर छपी हैं.
इस कदम की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि यह सड़क ग्रेट निकोबार विकास परियोजना के तहत बनाई जा रही है.
इस परियोजना में एक अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह, हवाई अड्डा, पॉवर प्लांट और टाउनशिप जैसी कई बड़ी योजनाएं शामिल हैं.
क्या है यह सड़क परियोजना?
इस परियोजना के तहत एक मुख्य सड़क बनाई जानी है. यह सड़क बनाने के लिए लगभग 90.943 हेक्टेयर निजी जमीन का अधिग्रहण किया जाना है.
कुल मिलाकर इस सड़क से लगभग 666.44 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित होगा. प्रभावित क्षेत्र में वन भूमि भी शामिल है.
इससे पहले 11 अप्रैल को अंडमान और निकोबार के सामाजिक कल्याण निदेशालय ने एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें बताया गया कि इस अधिग्रहण के लिए सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य होगा.
इस अधिसूचना में यह भी बताया गया कि अध्ययन 6 महीने के अंदर पूरा करना होगा.
किन क्षेत्रों पर पड़ेगा असर?
इस सड़क परियोजना से कैम्पबेल बे, गांधी नगर, जोगिंदर नगर, गोविंद नगर, लक्ष्मी नगर और विजय नगर जैसे राजस्व गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे.
यह सड़क कई किलोमीटर लंबे जंगलों से भी होकर गुजरेगी. इसका उल्लेख प्रशासन ने एक मानचित्र जारी करके किया था.
क्या हैं आदिवासी समुदायों की चिंताएं?
ग्रेट निकोबार द्वीप पर लगभग 200 शोंपेन रहते हैं, जो विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह की श्रेणी में शामिल हैं. इसके अलावा यहां निकोबारी समुदाय भी रहता है.
पोर्ट ब्लेयर की निवासी और निकोबारी मानवविज्ञानी एन्स्टिस जस्टिन का कहना है कि ऐसी बड़ी परियोजनाओं से आदिवासी जीवनशैली और संस्कृति पर बुरा असर पड़ सकता है.
उन्होंने चेतावनी दी कि जैसे अंडमान ट्रंक रोड बनने से जारवा समुदाय की जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा वैसे ही यह सड़क शोंपेन समुदाय के लिए खतरा बन सकती है.
उन्होंने यह भी कहा कि शोंपेन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता (immune system) आम लोगों की तुलना में कमजोर होती है और बाहरी संपर्क से उनके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है.
परियोजना की ज़िम्मेदारी किसके पास?
इस पूरे निर्माण कार्य की ज़िम्मेदारी अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation Ltd.) को दी गई है.
इस कंपनी ने पर्यावरण और तटीय क्षेत्र मंज़ूरी पाने के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessment) रिपोर्ट भी पर्यावरण मंत्रालय को सौंप दी है.
क्या आदिवासियों को शामिल किया गया है?
इस सामाजिक मूल्यांकन प्रक्रिया में सबसे बड़ी चिंता यह है कि शोंपेन और निकोबारी आदिवासी समुदायों को अध्ययन में शामिल ही नहीं किया गया है.
दक्षिण निकोबारी क्षेत्रों में काम कर चुके एक वरिष्ठ शोधकर्ता ने बताया कि “दस्तावेज़ों में कहीं भी यह नहीं बताया गया कि आदिवासी गांव प्रभावित होंगे या क्यों उन्हें अध्ययन से बाहर रखा गया है जबकि यही समुदाय इस जमीन पर पीढ़ियों से रहते आए हैं.”
यह सोचने वाली बात है कि जो समुदाय इस ज़मीन पर बरसों से रहता आया है, उसे ही अगर इस अध्ययन में शामिल नहीं किया जा रहा है तो इस अध्ययन का कोई तर्क नहीं रह जाता.
यह SIA रिपोर्ट भूमि अधिग्रहण कानून 2013 और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह भूमि अधिग्रहण नियम 2018 के तहत की जानी है.
लेकिन सवाल उठता है कि जब तक इन नियमों के तहत प्रभावित लोगों की पहचान ही नहीं होगी तब तक न्यायसंगत मूल्यांकन कैसे हो पाएगा?