झारखंड के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की बदहाल स्थिति पर नरेगा सहायता केंद्र (NREGA Sahayata Kendra), मनिका (लातेहार) द्वारा जारी एक ताजा रिपोर्ट ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
दरअसल, लातेहार जिले के एकल-शिक्षक स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति और उदासीनता के कारण बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पा रहा है.
यह बात शुक्रवार (27 जून, 2025) को ‘एकल शिक्षक स्कूलों का संकट’ नाम से प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है.
झारखंड के नरेगा सहायता केंद्र स्वतंत्र मददगारों द्वारा चलाए जाने वाले केंद्र हैं जो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों के लाभों को पाने में ग्रामीणों की मदद करते हैं.
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मानकों के अनुसार एकल शिक्षक वाले स्कूलों की कार्यक्षमता का आकलन करने के लिए जनवरी और मार्च के महीनों के बीच एक सर्वेक्षण किया गया था. मनिका ब्लॉक के 55 ऐसे स्कूलों में से 40 को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया था.
स्टडी की रिपोर्ट में पाया गया है कि इन स्कूलों के 84 प्रतिशत छात्र अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हैं.
हैरान करने वाले आंकड़े
लातेहार के मनिका प्रखंड में नरेगा सहायता केंद्र द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि करीब 87.5 फीसदी स्कूलों में बिना किसी पूर्व सूचना के निरीक्षण के दौरान, कोई भी शिक्षण कार्य नहीं चल रहा था यानि स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया नहीं जा रहा था.
सर्वे के दिन सिर्फ एक तिहाई बच्चे ही स्कूल आए. वहीं 40 में से सिर्फ़ 5 स्कूलों में ही पढ़ाई चल रही थी. बाकी 87.5 फीसदी स्कूलों में बच्चे बेकार बैठे, खेल रहे थे या खुद से पढ़ने की कोशिश कर रहे थे.
औसतन 59 बच्चे एक टीचर पर थे, कुछ स्कूलों में तो हालात और भी ख़राब थी. बिचलीडाग गाँव में तो एक टीचर 144 बच्चों को कई कक्षाओं में पढ़ा रहा था.
एक शिक्षक वाले स्कूलों में शिक्षा का अधिकार (Right to Education) अधिनियम का उल्लंघन हो रहा है. क्योंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम दो शिक्षक और 30 बच्चों पर एक शिक्षक का प्रावधान है.
जबकि रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड में करीब 8000 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से एक तिहाई में केवल एक ही शिक्षक है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे इरादे होने के बावजूद भी अकेले शिक्षकों के लिए इतने सारे बच्चों (इन 40 स्कूलों में औसतन 59 बच्चे, कई कक्षाओं के) को खुद पढ़ाना बहुत मुश्किल है. रिकॉर्ड रखने और दूसरे कामों का बोझ और सुविधाओं की कमी से उनका मनोबल और भी गिरता है.
स्टडी के मुताबिक, एकल शिक्षक वाले स्कूलों में 40 में से 35 शिक्षक शिक्षक अनुबंध यानि कॉन्ट्रैक्ट पर हैं, न कि स्थायी कर्मचारी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉन्ट्रैक्ट पर कार्यरत होने के कारण अक्सर खराब प्रशिक्षण, रोजगार की असुरक्षा, कम वेतन और कम लाभ मिलते हैं, जिससे शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि 40 शिक्षकों में से सिर्फ़ छह महिला शिक्षिकाएं हैं. जिसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है, खासकर लड़कियों पर क्योंकि उन्हें सुरक्षित और सहज महसूस नहीं हो पाता.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 40 शिक्षकों में से 31 की उम्र 40 साल से ज़्यादा है, जिससे हाल के वर्षों में नई नियुक्तियों की कमी साफ़ दिखती है.
रिपोर्ट में शिक्षकों की अनुपस्थिति को लगातार बनी रहने वाली समस्या बताया गया है जिससे छात्रों को पढ़ाई प्रभावित होती है. वैसे जब शिक्षक उपस्थित होते हैं तब भी वे अक्सर प्रशासनिक कामों में लगे रहते हैं.
रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि शिक्षक रिकॉर्ड बनाए रखने में हर हफ्ते औसतन 10 घंटे बिताते हैं. इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है क्योंकि शिक्षकों का ध्यान पढ़ाई पर कम और कागजी कार्रवाई पर ज़्यादा रहता है. इस कमी से बच्चों का शैक्षणिक प्रदर्शन और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एकल शिक्षक वाले स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं की कमी से शिक्षा में रुकावटें बढ़ रही हैं.
सिर्फ 7 स्कूलों में ही शौचालय की व्यवस्था
रिपोर्ट के मुताबिक, 82.5 प्रतिशत स्कूलों में बच्चों के लिए शौचालय तक की व्यवस्था नहीं थी. सिर्फ 17.5 फीसदी स्कूलों में ही काम करने लायक शौचालय हैं.
वहीं मनिका ब्लॉक में 33 में से सिर्फ 7 स्कूलों में ही शौचालय की व्यवस्था है.
वहीं मिड-डे मील की खराब गुणवत्ता से स्थिति और भी बिगड़ रही है, जिससे बच्चे स्कूल जाने से हिचकिचा रहे हैं.
क्योंकि पौष्टिक आहार और अंडे के नियमित वितरण के बजाय बच्चों को मात्र दिखावे के लिए भोजन परोसा जा रहा है. रसोइयों की दुर्दशा और भी बदतर है जिन्हें अक्टूबर 2024 से उनका वेतन तक नहीं मिला है.
इसी तरह कई स्कूलों में बिजली, पेयजल और बैठने की उचित व्यवस्था तक नहीं है, जिसके चलते बच्चों को फर्श पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है.
शिक्षकों के 95 हज़ार से अधिक पद रिक्त
झारखंड हाई कोर्ट ने हाल ही में इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेते हुए शिक्षकों की तत्काल नियुक्ति का निर्देश दिया था.
इसके जवाब में राज्य सरकार ने सितंबर 2025 तक 26,000 शिक्षकों की भर्ती का वादा किया है.
हालांकि, शिक्षा मंत्रालय के 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 95 हज़ार 897 शिक्षक पद रिक्त हैं, जिससे स्पष्ट है कि यह संख्या भी अपर्याप्त होगी.
रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि सिर्फ शिक्षक भर्ती से यह संकट हल नहीं होगा. बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार, शिक्षकों के कार्यभार में कमी और सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए समग्र नीति बनाने की जरूरत है.