महाराष्ट्र सरकार ने नंदूरी गांव में सप्तश्रृंगी मंदिर में पशु बलि की अनुमति देने का फ़ैसला किया है. इस सिलसिले में सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) को सूचित किया है कि वह नासिक जिले के मंदिर में बलि चढ़ाए जाने पर लगी रोक को हटा रही है.
साल 2016 में एक गोलीबारी की घटना के बाद इस मंदिर में पशु बलि और गोली चला कर सलामी देने की प्रथा पर रोक लगा दी गई थी. गोलीबारी की घटना में 12 लोग घायल हो गए थे.
यहाँ के मंदिर में एक अनुष्ठान के हिस्से के रूप में आदिवासी जानवरों की बलि देते हैं. इसके अलावा हथियारों से देवता को सलामी भी पेश करते हैं. 2016 में हुई गोलीबारी में 12 लोग हताहत हुए थे.
सरकार ने अदालत को बताया है कि मंदिर में बलि प्रथा पर रोक हटाई गई है. लेकिन गोली चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
हाल ही में सुनवाई के दौरान जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्ढा की बेंच के सामने सरकारी वकील एमजीपी ठाकुर ने यह बयान दिया. पीठ आदिवासी विकास संस्था द्वारा 27 सितंबर, 2017 को राज्य द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
2019 में दायर याचिका में कहा गया है कि फायरिंग के बाद 2016 में जानवरों की बलि बंद हो गई. याचिका में दावा किया गया है कि कुछ लोगों को गोली दुर्घटनावश लगी थी. इस याचिका में कहा गया है कि अनादि काल से आदिवासी समुदाय बकरियों की बलि देते रहे हैं. आदिवासी परंपरा का यह एक अभिन्न अंग है.
जिस गाँव में सप्तश्रृंगी मंदिर स्थित है वहाँ के लोगों को आशंका है कि अगर देवता को बलि नहीं चढ़ाई गई तो गाँव और परिवारों पर मुसीबत आ सकती हैं.
याचिका में दावा किया गया है कि एसडीओ (उप-मंडल अधिकारी) ने आदेश पारित करने से पहले किसी से बातचीत तक नहीं की थी. इस मंदिर में पशु बलि पर प्रतिबंध हटाने के लिए अधिकारियों को कई आवेदन दिए गए. याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने अनुष्ठान के दौरान 6 लोगों को उपस्थित रहने और केवल एक बकरी की बलि देने की अनुमति देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया.
कोर्ट ने सरकार के बयान को सुनने के बाद संस्था की एक याचिका का निस्तारण कर दिया है. ।