एक नई रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल यानि 2023 में हिंसा के कारण दक्षिण एशिया में कुल 69,000 लोग विस्थापित हुए.
इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इनमें से 67,000 विस्थापन का कारण मणिपुर हिंसा है.
करीब 5 साल से पूरे भारत में इतनी अधिक मात्रा में विस्थापन नहीं हुआ जितना केवल 2023 में एक राज्य में हुआ.
जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) की रिपोर्ट ने इसे 2018 के बाद से भारत में संघर्ष और हिंसा के कारण होने वाले विस्थापन की सबसे अधिक संख्या बताया है.
मैतई समुदाय सरकार से काफी लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने की मांग कर रहा था. इस सिलसिले में मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद 3 मई, 2023 को मणिपुर के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था.
इस मार्च के कारण मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़प हुई. इन झड़पों ने अंतत: बड़ा रूप ले लिय.
3 मई 2023 को मणिपुर के आदिवासी बहुल चुराचांदपुर में चल रहा विरोध प्रदर्शन हिंसा में तबदील हो गया.
इस हिंसा के मणिपुर में बड़ी संख्या में लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. जहां मैतई लोगों को पहाड़ी इलाके छोड़ने पड़े वहीं इंफ़ाल के मैदानी इलाकों से जनजातीय लोगों का विस्थापन हुआ. इस दौरान 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को एक जिले से दूसरे जिले में शरण लेनी पड़ी तो हज़ारों लोगों को मणिपुर से किसी अन्य राज्य में भी जाना पड़ा.
वर्ष 2023 के अंत में भारत में ऐसे 0.61 मिलियन लोग बताए गए हैं जिन्हें आंतरिक रूप से विस्थापित किया गया था. रिपोर्ट कहती है कि पूरे विश्व में ऐसे 68.3 मिलियन लोग हैं जिन्हें हिंसा और संघर्ष के चलते साल 2023 में विस्थापित होना पड़ा.
पिछले पांच वर्षों में, संघर्ष के परिणामस्वरूप आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या में 22.6 मिलियन की वृद्धि हुई है, जिसमें 2022 और 2023 में यह संख्या सबसे अधिक बढ़ी.
दुनिया भर में विस्थापन के कारणों में प्राकृतिक आपदाओं समेत कई कारण हो सकते हैं लेकिन मणिपुर में विस्थापन का कारण जातीय हिंसा है.
अफ़सोस की बात ये है कि एक साल से ज़्याद हो चुका है और यह हिंसा थम नहीं रही है. मणिपुर में हिंसा की वजह से फ़िलहाल मैतई और कुकी समुदाय के बीच गहरी खाई पैदा हो गई है. दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं.
इस पूरे घटनाक्रम में चिंता की बात ये है कि राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेंद्र सिंह पर आरोप है कि उन्होंने निष्पक्ष हो कर हिंसा से निपटने की कोशिश नहीं की है