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तमिलनाडु में आदिवासी भाषाओं को बचाने की पहल, किस्से-कहानियों के ज़रिये सीख रहे हैं बच्चे

आदिवासी युवाओं के लिए अपने इतिहास के बारे में जानना ज़रूरी है, ताकि वो गर्व महसूस करें, और अपनी संस्कृति से हिचकिचाएं नहीं.

आज के दौर में किसी व्यक्ति की पहचान शायद उसके लिए सबसे बड़ा मुद्दा है. चाहे वो पहचान धर्म से हो, राष्ट्र से, राज्य से, या फिर भाषा से.

दुनियाभर में हर साल सैकड़ों भाषाएं लुप्त हो रही हैं, क्योंकि आधुनिक दुनिया की भागदौड़ में किसी के लिए अपनी संस्कृति को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है.

लेकिन, यही वजह भी है कि हम भाषाओं और उसके ज़रिये अपनी संस्कृति को संभालकर रखें.

तमिलनाडु के आदिवासी समुदायों के बीच उनकी भाषा का विलुप्त होना एक बड़ी समस्या थी. लेखक लक्षमणन रंगसामी ने अब इन आदिवासी भाषाओं को बचाने के लिए एक नई पहल शुरु की है.

रंगसामी आदिवासी बच्चों को अपनी भाषा में कहानियां सुनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. आदिवासी बच्चे अपनी भाषा में अपनी ज़मीन, अपने पूर्वजों, और अपने जीवन की कहानी सुनाते हैं.

लक्षमणन रंगसामी लंबे समय से तमिल नाडु के आदिवासी समुदायों जैसे इरुला, टोडा, कोटा और कुरुम्बा के बीच काम कर रहे हैं. इन सभी आदिवासियों में एक समानता है कि इनकी युवा पीढ़ि ने आदिवासी भाषा को छोड़कर तमिल भाषा को अपना लिया है.

आदिवासी बच्चों के साथ लक्ष्मणन रंगसामी

इसकी वजह है कि उनके आसपास, और उनके स्कूलों में ज़्यादातर तमिल ही बोली जाती है.

वैसे ही अकसर आदिवासी युवा मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज में अलगाव महसूस करते हैं. ज़ाहिर है, ऐसे में खुद को वह अलग नहीं दिखाना चाहते, और भाषा उन्हें एकदम अलग खड़ा कर सकती है.

यही वजह है कि यह बच्चे घर से बाहर राज्य में आम बोली जाने वाली भाषा में ही बात करते हैं. दिक्कत तब होती है जब वो घर पर भी अपनी भाषा में बात नहीं करते.

दूसरी मुश्किल है आदिवासी भाषाओं में साहित्य की कमी. आदिवासी युवाओं के लिए अपने इतिहास के बारे में जानना ज़रूरी है, ताकि वो गर्व महसूस करें, और अपनी संस्कृति से हिचकिचाएं नहीं.

लक्ष्मणन रंगसामी ने इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. उन्होंने न सिर्फ़ आदिवासी बच्चों को अपने बाप-दादा से उनके समुदाय के इतिहास और परंपराओं के बारे में पूछने को कहा, बल्कि उन्होंने तमिल की कुछ कहानियों को आदिवासी भाषा में ट्रांस्लेट भी किया.

इसके बाद इन बच्चों को इन कहानियों को याद कर अपनी भाषा में सुनाने के लिए प्रेरित किया गया. इससे आदिवासी भाषाओं को बचाने में मदद मिल रही है.

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