HomeIdentity & Lifeफॉरेस्ट गॉडेस (Forest Goddess) के ग्रैंड फिनाले तक सुधालक्ष्मी का सफ़र

फॉरेस्ट गॉडेस (Forest Goddess) के ग्रैंड फिनाले तक सुधालक्ष्मी का सफ़र

जिस जनजति में लड़कियों को आज भी सामाजिक जीवन से दुर रखा जाता हो, उस जनजाति से आई महिला के लिए पारंपरिक जीवनशैली को चुनौती देते हुए यहां तक पहुंचना अपने आप में किसा जीत से कम नहीं है.

केरल के इडुक्की ज़िले की पहाड़ियों में बसे कुलाचिवायल गांव की रहने वाली 29 वर्षीय सुधालक्ष्मी ने एक ऐसा कदम उठाया है जो आज तक उनकी जनजाति की किसी भी महिला ने नहीं उठाया था.

सुधालक्ष्मी ‘मिस केरल फॉरेस्ट गॉडेस’ (Forest Goddess) प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली मुथुवन जनजाति की पहली महिला बनी हैं. इतना ही नहीं उनका चयन प्रतियोगिता के ग्रैंड फिनाले के लिए भी हो गया है.

यह फिनाले 15 जून से पहले आयोजित किया जाएगा, जिसमें वे पूरे राज्य की आदिवासी महिलाओं के बीच मंच पर आत्मविश्वास के साथ उतरेंगी.

यह प्रतियोगिता कोच्चि की ऑरोरा फिल्म कॉर्पोरेशन (Aurora Film Corporation) नामक संस्था द्वारा आयोजित की जा रही है.

इस प्रतियोगिता में सुंदरता के साथ-साथ स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक पहचान को महत्व दिया जाएगा.

जीत से पहले सुधालक्ष्मी की कहानी खास क्यों है

सुधालक्ष्मी मुथुवन जनजाति से तालुक्क रखती हैं. इस जनजाति में महिलाओं को सामाजिक जीवन से दूर ही रखा जाता है.

आज भी यहां लड़कियों को मासिक धर्म के समय ‘वलयमपुरा’ नाम की झोंपड़ियों में रहना पड़ता है. अजनबियों से मिलना मना होता है.

ऐसी रुढ़ीवादी संस्कृति के बावजूद सुधालक्ष्मी का इस तरह के मंच पर पहुंच पाना एक बड़ा साहसिक कदम है.

आत्मनिर्भरता के लिए संघर्ष

मुथुवन जनजाति की ज़्यादातर महिलाएं 10वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. लेकिन सुधालक्ष्मी ने हिम्मत नहीं हारी.

माता-पिता के समर्थन से उन्होंने आदिमाली के एक निजी संस्थान से सहायक नर्सिंग और प्रसूति विद्या (Auxiliary Nursing Midwifery) का पाठ्यक्रम पूरा किया.

इसके बाद उन्होंने तमिलनाडु से चिकित्सकीय प्रयोगशाला तकनीक (Diploma in Medical Laboratory Technology) में डिप्लोमा किया.

हालांकि उन्हें दूर-दराज़ इलाकों से नौकरी के प्रस्ताव मिले लेकिन अपने बीमार माता-पिता को छोड़कर जाना उन्हें मंज़ूर नहीं था.

उन्होंने पास के मरायूर कस्बे के एक निजी अस्पताल में मात्र 2000 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी की. लेकिन छह महीने बाद एक दुर्घटना के चलते उन्होंने यह काम छोड़ दिया.

पुरानी सिलाई मशीन से नए सपनों की शुरुआत

इसके बाद भी सुधालक्ष्मी ने हार नहीं मानी. उन्होंने एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और स्वयं वीडियो देखकर सिलाई सीखी.

इसके बाद वे अपने गांव और आसपास के लोगों के लिए कपड़े सिलती हैं. इसके साथ-साथ वे कभी-कभी मज़दूरी भी करती हैं ताकि परिवार का गुज़ारा चल सके.

मंच पर पहला क़दम

किसी को उम्मीद नहीं थी कि सुधालक्ष्मी ‘मिस केरल फॉरेस्ट गॉडेस’ के लिए चुनी जाएंगी.

सुधालक्ष्मी ने बताया कि उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में अपनाया. 12 से 16 मई तक कोच्चि में चयन और प्रशिक्षण शिविर हुआ.

इस प्रतियोगिता का अंतिम चरण 15 जून से पहले आयोजित किया जाएगा.

उनका कहना है, “मुझे परिणाम की चिंता नहीं है. मेरे लिए यह मौका ही सबसे बड़ी जीत है, जिससे मैं और मेरे जैसी कई लड़कियां यह समझ सकें कि हम भी सपने देख सकती हैं.”

मुथुवन जनजाति मुख्य रूप से केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित पहाड़ी इलाकों में रहती है. यह समुदाय अब भी पारंपरिक जीवनशैली और पितृसत्तात्मक सोच से बंधा हुआ है. सुधालक्ष्मी ने इस सोच को चुनौती दी है.

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