25 साल तक त्रिपुरा में एकछत्र राज करने वाली सीपीआई (एम) का साथ आदिवासियों ने छोड़ा तो पार्टी एक झटके में सत्ता से बाहर हो गई. राज्य में 2018 के विधान सभा चुनाव हारने के बाद सीपीआई (एम) ने क्या सबक़ सीखा है?
क्या पार्टी अब त्रिपुरा में बंगाली प्रभाव वाली पार्टी की छवि तोड़ पाई है. पार्टी ने एक आदिवासी नेता को पार्टी का नेता चुना है, क्या
अब आदिवासी पार्टी को फिर से समर्थन देंगे?
सीपीएम बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस और टिपरा मोथा को साथ लाने की कोशिश कर रही है, क्या राज्य में चुनाव से पहले कोई गठबंधन बन सकता है?
ऐसे ही ज़रूरी सवालों के जवाब जितेन्द्र चौधरी ने इस इंटरव्यू में दिये हैं. पूरा इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें.