आदिवासियों (indigenous Peoples) के लगभग 200 समूह वर्तमान में अपनी इच्छा से दुनिया के बाकी समुदायों से दूरी बना कर रखते हैं.
इन समुदायों में से कुछ के साथ अन्य समुदायों के साथ बहुत ही सीमित संपर्क है. जिसे शुरूआती संपर्क कहा जा सकता है. ऐसे आदिवासी समूह बोलीविया, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, वेनेजुएला और भारत में मौजूद हैं.
ये आदिवासी समूह प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध सुदूर जंगलों में रहते हैं. ये आदिवासी समूह जंगल में मिल कर भोजन जमा करते हैं. इन आदिवासी समूहों के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे अपनी जीवनशैली, भाषा और संस्कृति को बचाए हुए हैं.
इन आदिवासी समुदायों के बार में यह माना जाता है कि उनके जीवन के लिए उनका परिवेश यानि जंगल बेहद ज़रूरी है. दुनिया भर के एक्सपर्ट यह कहते हैं कि इनकी रहने की प्राकृतिक जगहों से छेड़छाड़ या बदलाव बहेद ख़तरनाक साबित हो सकती है.
दुनिया भर के ऐसे आदिवासी समूह जो खुद को बाकी दुनिया से अलग (isolated) रखते हैं उनके अस्तित्व (existance) को बचाने के लिए यह ज़रूरी है कि उनके परिवेश (habitat) को बचा कर रखा जाए.
भारत के संदर्भ में अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी समूहों की बात की जा सकती है. इन समूहों में ग्रेट अंडमानी (Great Andamanese), ओंग (Onge), जारवा (Jarawa), सेंटिनलीज (sentinelese tribe) और शोम्पेन जनजातीय समूह (Shompen Tribal Groups) शामिल हैं.
इनमें से ग्रेट अंडमानी स्ट्रेट आईलैंड, ओंग लिटिल अंडमान और जारवा दक्षिण अंडमान द्वीप पर रहते हैं. जबकि शोम्पेन जनजाति के लोग ग्रेट निकोबार द्वीप पर बसे हैं.
भारत के इन आदिवासियों के साथ अठारहवीं शताब्दी में संपर्क शुरु हुआ. इस संपर्क की शुरुआत 1789 से देखी जा सकती है जब व्यापारिक और सामरिक कारणों से पहले डच और फिर अंग्रेज़ों ने अंडमान द्वीप पर अपने अड्डे बनाने शुरू किए थे.
लेकिन भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम यानि 1857 के बाद साल 1858 में अंग्रेज़ सरकार ने अंडमान में स्थाई अड्डा बनाया जिसका मक़सद भारत की आज़ादी में शामिल लोगों को यहां जेल में रखना था.
भारत के उपनिवेश काल का इतिहास बताता है कि यहां के मूल निवासियों यानि आदिवासी समूहों के साथ ज़बरन संपर्क ख़तरनाक साबित हुआ था.
जब अंडमान में अंग्रेजों का स्थाई अड्डा बन गया तो 1863 में अंग्रेज़ सरकार ने अंडमान होम स्थापित किये. आज जिन्हें ग्रेट अंडमानी जनजाति कहा जाता है उनके अलग अलग समूह के लोगों को ज़बरदस्ती पकड़ कर यहां क़ैद किया गया.
अंग्रेज सरकार की तरफ से अंडमान होम स्थापित करने का मक़सद अंडमान के आदिवासियों को सभ्य (civilized) बनाना बताया गया था.
अंडमान निकोबार द्वीप समूह के इतिहास में कई ऐसी बातें दर्ज हैं और शायद नहीं भी हैं जिनसे पता चलता है कि उपनिवेश काल में यहां की जनजातियों के साथ ज़बरन संपर्क के परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं.
आज हालत यह है कि ग्रेट अंडमानी जनजाति का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त माना जा सकता है. अंडमान प्रशासन और सरकार आधिकारिक तौर पर यह दावा ज़रूरी करते हैं कि स्ट्रेट आईलैंड पर अभी भी ग्रेट अंडमानी रहते हैं.
लेकिन सच्चाई यह है कि अब यह एक मिश्रित समूह है जिसमें अपनी भाषा बोलने वाला एक भी व्यक्ति नहीं है.
इसी तरह से लिटिल अंडमान के ओंग या ओंगी समूह के अस्तिवत्व पर ही ख़तरा नजर आता है. इनकी जनसंख्या में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है. जारवा, सेंटिनलीज़ की सही सही जनसंख्या भी बता पाना मुश्किल है.
देश आज़ाद होने के बाद भी अंडमान निकोबार की जनजातीय समूहों के साथ संपर्क की नीति पर विवाद ही रहा है. अब यह लगभग निर्विवाद रुप से माना जाता है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह के जनजातीय समूहों की भाषा और संस्कृति ख़त्म हो चुकी है या फ़िर ख़त्म होने की तरफ बढ़ रही है.
यहां के दो समूहों जाराव और सेंटिनलीज़ के बारे में किसी हद तक यह माना जा सकता है कि उनकी भाषा और जीवन शैली किसी हद तक बची हुई है.
इसका कारण ये है कि जारवा ने बाहरी दुनिया के साथ सीमित और सेंटिनलीज़ ने अभी तक पूरी तरह से बाहरी संपर्क को नकार कर रखा है.
हाल ही में ग्रेट निकोबार द्वीप पर 72 हजार करोड़ रूपये की ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर दुनिया भर में चिंता व्यक्त की जा रही है.
यह मामला संसद के बजट सत्र में भी उठा है. इस परियोजना के तहत ग्रेट निकोबार में एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह, एक हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप शामिल है.
अंडमान निकोबार की जनजातियों पर काम करने वाले बुद्धीजीवी और कार्यकर्ताओं के अलावा वहां के प्रशासन में शीर्ष अधिकारी रहे लोग भी यह कह रहे हैं कि यह परियोजना शोम्पेन जनजाति को ख़त्म कर सकती है.
विश्व के आदिवासी लोगों का यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2024 (International Day of the World’s Indigenous Peoples 2024)’स्वैच्छिक अलगाव और प्रारंभिक संपर्क में आए आदिवासी लोगों के अधिकारों की रक्षा(Protecting the Rights of Indigenous Peoples in Voluntary Isolation and Initial Contact) पर केंद्रित है.
दुनिया से अलग रहने वाले आदिवासी समूह जंगल के सबसे अच्छे संरक्षक हैं. इसके साथ ही जंगल में भूमि और क्षेत्रों पर उनके सामूहिक अधिकार सुरक्षित होते हैं. वहां उनके समाज के साथ-साथ जंगल भी पनपते हैं.
इसलिए उनका अस्तित्व हमारे ग्रह की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि भारत में अंडमान निकोबार जनजाति के लोगों के साथ संपर्क और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के बारे में पारदर्शिता अपनाई जाए.
यह देखा गया है कि अंडमान प्रशासन यहां की आदिम जनजातियों (PVTG) के बारे में बात करते हुए काफ़ी गोपनीयता बरतता है. जबकि ज़रूरत इस बात की है कि यहां की जनजातियों के बारे में खुल कर बात की जाए.