मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में सहरिया आदिवासी जल, जंगल व जमीन के लिए अगले महीने यानि जून में पदयात्रा शुरू करेंगे. आदिवासियों ने फॉरेस्ट द्वारा छीनीं जमीनों को वापस करने,पीने का पानी मुहैया कराने से लेकर कुपोषण का बकाया तीन महीने का पैसा देने की मांग राज्य सरकार से की है.
इन सवालों को लेकर 3 जून को पहाड़गढ़ में 15 आदिवासी बहुल गांव के मुखियाओं की बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में पहाडगढ़,रामपुरकलां, सबलगढ़ व कैलारस क्षेत्र के मुखिया शामिल हुए. यहाँ के 2000 से ज्यादा सहरिया आदिवासी राज्य सरकार द्वारा की जा रही उपेक्षा से नाराज़ है.
आदिवासियों का कहना है कि दो दशक पहले 473 आदिवासियों को फॉरेस्ट विभाग ने जंगल की जमीनों से बेदखल कर दिया था. आदिवासियों से छीनी जमीनों पर वन विभाग के अफसरों ने दबंगों को काबिज करा दिया.
हजारों बीघा जमीन पर दबंग फसल उगा रहे हैं और आदिवासी पलायन के दौर में हैं. इसलिए सरकार से मांग की जाएगी कि उनकी छीनीं गई जमीनों को वापस दिलाया जाए.
इसके लिए जून के दूसरे सप्ताह में जमीनों से संबंधित ग्राम पंचायतों में पदयात्रा निकालकर व वन समितियों व ग्रामसभाओं में आदिवासियों को जमीन दिलाने के प्रस्ताव पारित कराए जाएंगे.
ग्राम पंचायतों में पास प्रस्तावों के आधार पर प्रशासन से माँग की जाएगी कि आदिवासियों को जमीनप वापस दिलाई जाए.
धौंधा व देवरा के 43 आदिवासी परिवारों का आरोप है कि उनकी 300 बीघा जमीन से राजस्व विभाग के अफसरों ने उन्हें भगा दिया. वह मरीयाई व खैराई जमीन को जोत रहे थे. आज उसी क्षेत्र की 1000 बीघा जमीन को दबंग जोत रहे हैं.
पीने के पानी की समस्या
मानपुर ,बहराई ,धोबिनी, मरा व चेटीखेरा गांव के जलस्त्रोतों का स्तर नीचे गिर जाने के कारण हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया है. इस हाल में आदिवासी डेढ़ से दो किमी दूर से पानी लाने को मजबूर हैं.
इधर सरकार ने आदिवासी बहुल 20 पंचायतों में से किसी एक को भी पंचायत चुनाव के लिए आरक्षित नहीं किया है.
कुपोषण का पैसा 3 महीने से नहीं मिला
धौंधा व कन्हार में आयोजित आदिवासियों की पंचायत में कई परिवारों ने शिकायत की है कि उन्हें प्रधानमंत्री योजना के तहत कुपोषण का 1000 रुपए महीने का पैसा बीते 3 महीने से नहीं मिला है.
सहरिया आदिवासी समुदाय में कुपोषण एक गंभीर मसला है. कुपोषण की वजह से सहरिया समुदाय में बच्चों की मौत एक बड़ी चिंता की बात है. सरकार के सभी दावों के बावजूद अभी तक इस समुदाय में बच्चों और महिलाओं में कुपोषण पर क़ाबू नहीं पाया जा सका है.
अगर इन आदिवासी परिवारों का यह आरोप सही है तो यह एक बेहद गंभीर मामला है. क्योंकि कुपोषण से निपटने के लिए दिए जाने वाली धनराशी का समय पर ना मिलना बच्चों की ज़िंदगी से खिलवाड़ है.
मध्य प्रदेश में सहरिया आदिवासी पीवीटीजी (PVTG) यानि विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति की श्रेणी में हैं. राज्य में इस जनजाति में कुपोषण से लड़ने के अलावा उनके विकास के लिए विशेष प्रावधान हैं.
सहरिया आदिवासियों में कुपोषण का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच था. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद सहरिया आदिवासियों में कुपोषण से बच्चों की मौतों का मामला थमा नहीं है.सहरिया आदिवासी जीविका के लिए दिहाड़ी मज़दूरी पर आश्रित हैं.