HomeAdivasi Dailyआदिवासी औरत प्रसव पीड़ा में डेढ़ किलोमीटर पैदल चली

आदिवासी औरत प्रसव पीड़ा में डेढ़ किलोमीटर पैदल चली

बुनियादी ढांचे और सड़क संपर्क के अभाव में इलाक़े के जेनु कुरुबा आदिवासियों के लिए इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं.

कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिज़र्व के किनारे रहने वाले आदिवासियों की दुर्दशा देखिए कि एक गर्भवती महिला को एम्बुलेंस तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर से ज़्यादा पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा. वो भी तब जब उन्हें लेबर पेन (labour pain) हो रहा था. 

बुनियादी ढांचे और सड़क संपर्क के अभाव में इलाक़े के जेनु कुरुबा आदिवासियों के लिए इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं. यह घटना मैसूरू के एचडी कोटे तालुक के बूडनूर गांव के पास के बोम्मलपुरा हाड़ी आदिवासी बस्ती की है. 

इस आदिवासी बस्ती में रहने वाले जेनु कुरुबा लोगों ने न्यू इडिंयन एक्सप्रेस को बताया कि 20 साल की रंजीता को जब लेबर पेन शुरु हुआ तो उसके परिवार के लोगों ने तुरंत आशा कार्यकर्ता मंगला को इसके बारे में सूचित किया. मंगला ही गांव की स्वास्थ्य समस्याओं का ध्यान रखती हैं. 

मंगला ने तुरंत एक एम्बुलेंस चालक को बुलाया जो मौके पर पहुंचा भी. हालांकि ग्रामीण आदिवासी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल विवेकानंद मेमोरियल अस्पताल से एम्बुलेंस तो समय पर आ गई, लेकिन आदिवासी बस्ती को जोड़ने वाली सड़क की खराब हालत ने एम्बुलेंस को मरीज़ के घर तक पहुंचने नहीं दिया. 

उस समय भारी बारिश भी हो रही थी, तो कच्ची सड़क पर गाड़ी का चल पाना नामुमकिन ही था. ऐसे में जब कोई चारा नहीं बचा तो रंजीता को एंबुलेंस तक पहुंचने के लिए घर से करीब 1.5 किमी दूर पैदल ही चलना पड़ा. आशा कार्यकर्ता मंगली भी उनके साथ चलीं.

मंगला ने कहा, “यह किस्मत की बात है कि रंजीता को समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सका, और उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. अगर यह रात के समय होता, तो बात अलग होती, और मामला बिगड़ सकता था.” 

उन्होंने कहा कि गांव में मॉनसून के दौरान सड़क की स्थिति बद से बदतर हो जाती है. इन हालात में स्कूल और आंगनबाड़ी जाने वाले बच्चे भी कई मुश्किलों का सामना करते हैं.

बस्ती के निवासी कलप्पा कहते हैं कि पहले एम्बुलेंस गांव तक पहुंचती थी, और मरीज़ों को आसानी से अस्पताल ले जाया सकता था. हाल ही में गांववालों को बताया गया कि गांव को जोड़ने के लिए एक सड़क बनाई जाएगी. इस काम के लिए ज़रूरी पत्थर भी लाए गए. लेकिन मामला तब बिगड़ गया जब वन विभाग ने सड़क बनाने के लिए अनुमति नहीं दी, और काम बंद हो गया. 

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