कर्नाटक में कुद्रेमुख नेशनल पार्क के अंदर स्थित आदिवासी गांवों में बुनियादी सुविधाओं के भारी कमी है.
जब यूपीए सरकार ने 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम यानि फॉरेस्ट राइट्स एक्ट पारित किया, तो ग्रामीण और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता खुश थे कि यह कानून वनवासियों के हितों की रक्षा और उन्हें बुनियादी सुविधाएं दिला सकता है.
लेकिन 15 साल बाद भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है.
“यह अधिनियम तब पारित किया गया था जब यूपीए -1 सरकार सत्ता में थी. लेकिन 15 साल बीत जाने के बाद आदिवासी और जंगलों में रहने वाले दूसरे लोग सड़कों और बिजली जैसी सुविधाओं के लिए दर-दर भटक रहे हैं. स्थिति बहुत खराब है,” आदिवासी हक्कुगला समन्वय समिति के सदस्य शेखर लैला ने डेक्कन क्रॉनिकल को बताया.
शेखर ने कहा कि दक्षिण कन्नड़ जिले की नौ पंचायतों में कुद्रेमुख नेशनल पार्क वन सीमा के अंदर लगभग 300 मालेकुड़िया आदिवासी परिवार रहते हैं.
“अधिनियम में कहा गया है कि अगर पेड़ों की कटाई प्रति हेक्टेयर 75 पेड़ों से अधिक नहीं है, तो केंद्र सरकार दूसरे उद्देश्यों के लिए वन भूमि के इस्तेमाल को सहमति दे सकती है. अधिनियम में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल, स्कूल और पीने के पानी सहित 13 सुविधाएं कौन सी हैं. यह आदिवासी लोग लंबे समय से सड़क और बिजली की मांग कर रहे हैं. नौ घरों को छोड़कर, बिजली कनेक्शन के लिए जमा किए गए सभी आवेदन लंबित हैं,” लैला ने बताया.
इन आदिवासियों ने हर विभाग के अधिकारी से संपर्क किया और अपनी शिकायत को दूर करने के लिए हर संभव कोशिश की है. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है.
यहां तक कि इलाके के निर्वाचित प्रतिनिधि भी लोगों की मदद करने में नाकाम रहे हैं.