जम्मू-कश्मीर प्रशासन आदिवासी समुदायों के लिए एक मजबूत शैक्षिक इकोसिस्टम बनाने के लिए आदिवासी इलाकों के 200 स्कूलों को अपग्रेड करने की तैयारी कर रहा है.
अधिकारियों ने बताया कि आदिवासी इलाकों में स्कूलों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 104 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, और आदिवासी छात्रों की स्कॉलरशिप के लिए 30 करोड़ रुपये का सालाना बजट रखा गया है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “आदिवासी बच्चों को आधुनिक तरीके से शिक्षा देने के लिए, सरकार ने 40 करोड़ रुपये की लागत से 200 स्कूलों को स्मार्ट स्कूलों में बदलने की परियोजना शुरू की है.”
उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है. इन कोशिशों में आदिवासियों की भूमि, शिक्षा और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर करना शामिल है.
पिछले साल, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के तहत गुज्जर, बकरवाल और गद्दी सिप्पी समुदायों के लाभार्थियों को व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार प्रमाण पत्र सौंपे थे.
इस पहल को जम्मू और कश्मीर में आदिवासी समुदायों के लोगों के जीवन को बदलने की क्षमता वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है. जिन इलाकों में सामुदायिक अधिकार दिए गए हैं, वहां सड़कों, बिजली आपूर्ति, आंगनवाड़ी केंद्रों के निर्माण समेत बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10 करोड़ रुपये का बजट भी मुहैया कराया गया है.
शिक्षा से जुड़े उठाए गए कदम को उपराज्यपाल ने आदिवासी समुदायों को उनके शैक्षिक सशक्तिकरण की तरफ एक ऐतिहासिक शुरुआत बताया.
सिन्हा ने कहा, “हमारी प्राथमिकता आदिवासी बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना है. आधुनिक सुविधाओं से लैस आदिवासी और दूरदराज के इलाकों में स्मार्ट स्कूल बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करेंगे और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने के साथ-साथ ड्रॉप-आउट दर को भी रोकेंगे.”
कश्मीर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा साल 2012-13 से 2018-19 तक के आंकड़ों के शोध से पता चलता है कि इन सालों में स्कूलों की संख्या में वृद्धि हुई है. लेकिन प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्तर पर आदिवासी बच्चों के दाखिले में गिरावट देखी गई है.
उधर, सेकंडरी और हायर सेकेंडरी स्तर पर दाखिले में सुधार हुआ है. प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्तर पर आदिवासियों की GER (Gross Enrolment Ratio) दर में वृद्धि दिखाई दी, जबकि सेकेंडरी और हायर सेकंडरी में तेज गिरावट देखी गई.
समय के साथ आदिवासी लड़के और लड़कियों के स्कूल जाने की दर में थोड़ी समानता आई है, लेकिन यह अभी भी एक समान नहीं है. प्राइमरी स्तर पर आदिवासी बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में तेजी से वृद्धि हुई है, और हर गुजरती कक्षा के साथ यह और भी गंभीर होता जाता है.
इन आंकड़ों को देखते हुए जम्मू कश्मीर प्रशासन की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन इस पर भी नजर रखना जरूरी है कि इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर ठीक से लागू किया जा रहा है या नहीं.