महाराष्ट्र में आदिवासी विकास विभाग और समाज कल्याण विभाग की तरफ़ से राज्य में क़रीब 3000 हॉस्टल चलाए जाते हैं. लेकिन कोविड संकट के बाद से ये हॉस्टल बंद पड़े हैं. इन हॉस्टलों में रहने वाले हज़ारों आदिवासी छात्रों की पढ़ाई को भारी नुक़सान हो रहा है.
अधिकारियों का कहना है कि इन होस्टलों की साफ़ सफ़ाई का काम करना अभी बाक़ी है. इसके अलावा इन होस्टलों में दूसरे इंतज़ाम भी करने होंगे. मसलन प्रशासन चाहता है कि हॉस्टल खोले जाने से पहले कुछ मेडिकल सुविधाएँ भी तैयार की जाएँ.
प्रशासन का कहना है कि जल्दी ही हॉस्टलों के लिए नई एसओपी (SOP) तैयार की जाएगी. उसके बाद ही हॉस्टल खोले जाएँगे.
राज्य के दूर दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले आदिवासी छात्रों की मुश्किल ये है कि वहाँ पर ऑनलाइन क्लास करना भी आसान नहीं है. क्योंकि ग्रामीण और जंगल के इलाक़ों में नेटवर्क एक बड़ी बाधा है.
राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में कक्षा 5 तक और बाक़ी जगहों पर हाई स्कूल और सैकेंडरी स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी गई है. लेकिन हॉस्टल बंद होने की वजह से उन छात्रों को पढ़ाई का मौक़ा नहीं मिल रहा है जो यहाँ रहते थे.
महाराष्ट्र के कुल 3000 हॉस्टल में से 491 होस्टल आदिवासी विभाग चलाता है. इसके अलावा 2761 हॉस्टल समाज कल्याण विभाग भी चला रहा है. इन हॉस्टलों में रहने वाले छात्रों के माँ बाप की चिंता ये है कि बाक़ी बच्चे तो अब स्कूल जा रहे हैं लेकिन उनके बच्चे अभी भी घरों पर ही हैं.
देश के कई आदिवासी इलाक़ों से इस तरह की ख़बरें लगातार आती रही हैं कि वहाँ के बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई करना संभव नहीं है. इसकी एक वजह तो नेटवर्क कमज़ोर होना बताया जाता है. उसके अलावा पढ़ाई के लिए आदिवासी बच्चों के पास लैपटॉप जैसी सुविधाएँ भी नहीं हैं.
इस वजह से आदिवासी इलाक़ों के स्कूलों से ड्रॉप आउट बढ़ने की आशंका भी लगातार बताई जा रही है. एक स्टडी से पता चला है कि मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले में ही कम से कम 40 हज़ार आदिवासी बच्चों का स्कूल छूट गया है.
इस स्टडी में पता चला है कि स्कूल बंद होने के दौरान माँ बाप अपने बच्चों को लेकर दिहाड़ी पर निकल गए हैं. उसके बाद ये बच्चे स्कूल नहीं लौटे हैं.