HomeAdivasi Dailyहेमंत सोरेन के फ़ैसले को राज्यपाल 4 महीने से रोके हैं

हेमंत सोरेन के फ़ैसले को राज्यपाल 4 महीने से रोके हैं

राज्यपाल बैस का कहना है कि वो इस मसले को सम्मान या अधिकार का मामला नहीं बनाना चाहते हैं. लेकिन संविधान के तहत आदिवासी बहुल इलाक़ों में राज्यपाल की जिस भूमिका की कल्पना की गई है वो उसको ध्यान में रख कर ही काम कर रहे हैं.

झारखंड में आदिवासी सलाहकार समिति (Tribal Advisory Council) के मसले पर राज भवन और सरकार के बीच टकराव की स्तिथि बन रही है. क़रीब चार महीने पहले जून महीने की 5 तारीख को TAC के नए नियम (TAC Rules, 2021) जारी किए गए थे. 

झारखंड सरकार की तरफ़ से जारी इन नियमों को अभी तक राज्यपाल ने सहमति नहीं दी है. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस का कहना है कि वो इस मामले पर क़ानूनी सलाह ले रहे हैं. राज्यपाल का कहना है कि यह एक गंभीर मामला है और राज्यपाल को संविधान के तहत अनुसूचि 5 के इलाक़ों की ख़ास ज़िम्मेदारी दी गई है.

राज्यपाल का कहना है कि TAC के मामले में संविधान में जो प्रावधान किए गए हैं, उनके साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं है. उनके अनुसार सरकार विधानसभा के ज़रिए कोई क़ानून बना कर आदिवासी सलाहकार परिषद को राज्य सरकार के आधीन नहीं कर सकती है. 

उनका कहना है कि आदिवासी सलाहकार परिषद के सदस्य कैसे नियुक्त होंगे और उनका क्या काम होगा, यह संविधान में बताया गया है. राज्यपाल बैस का कहना है कि वो पहले यह समझना चाहते हैं कि कहीं हेमंत सोरेन की सरकार के इस फ़ैसले से संविधान की बनाई गई व्यवस्था से छेड़छाड़ तो नहीं की जा रही है.

दरअसल झारखंड में आदिवासी सलाहकार परिषद के नए नियमों के हिसाब से इसके सदस्यों को चुनने का अधिकार विधानसभा के ज़रिए मुख्यमंत्री को दिया गया है. राज्य सरकार के इस फ़ैसले को राज्यपाल अपने अधिकारों में कटौती के तौर पर देख रहे हैं. 

राज्यपाल का कहना है कि आदिवासी सलाहकार समिति राज्य के अनुसूचि 5 यानि आदिवासी बहुल क्षेत्रों के बारे में गवर्नर को सलाह देती है. इसलिए इस समिति में सदस्य कौन होंगे यह बात अहमियत रखती है. 

इसलिए यह भी ज़रूरी है कि इस समिति में नियुक्ति के नियम संविधान सम्मत हों. नियमों के हिसाब से आदिवासी सलाहकार समिति में राज्य सरकार की तरफ़ से 16 सदस्य नामित किये जाते हैं. गवर्नर भी इस समिति में कम से कम 4 सदस्य नामित कर सकते हैं.

राज्यपाल बैस का कहना है कि वो इस मसले को सम्मान या अधिकार का मामला नहीं बनाना चाहते हैं. लेकिन संविधान के तहत आदिवासी बहुल इलाक़ों में राज्यपाल की जिस भूमिका की कल्पना की गई है वो उसको ध्यान में रख कर ही काम कर रहे हैं.

राज्यपाल ने कहा है कि उनका हेमंत सोरेन सरकार से कोई बैर नहीं है. उन्होंने कहा कि वो मानते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य के विकास के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन जो संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपाल की भूमिका तय की गई है, उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए. 

5 जून को आदिवासी सलाहकार परिषद से जुड़ा राज्य सरकार के आदेश में सदस्यों की नियुक्ति और उन्हें हटाने की प्रक्रिया के नियम बताए गए हैं. नए नियमों के तहत मुख्यमंत्री इस सलाहकार परिषद के चेयरमैन होंगे. 

राज्य के आदिवासी मामलों के मंत्री इस परिषद के उपाध्यक्ष होंगे. इसके अलावा परिषद के कुल 18 सदस्यों में से कम से कम 15 आदिवासी विधायक ही होंगे. इसके अलावा जो 3 सदस्य होंगे उनको मुख्यमंत्री नामित करेंगे. 

ये तीन सदस्य वो होंगे जो आदिवासी विषयों में कहन रुचि रखते हैं. इसके अलावा इन लोगों का आदिवासी मामलों में गहन अध्ययन भी होना चाहिए. 

नए नियमों के तहत आदिवासी सलाहकार परिषद के सदस्यों की नियुक्ति में राज्य के मुख्यमंत्री और विधानसभा को अधिक अधिकार मिले हैं. शायद इसी वजह से राज्यपाल तिलमिला गए हैं. 

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