HomeAdivasi Dailyकेरल: एक टीचर बदल रही हैं आदिवासी बच्चों का जीवन

केरल: एक टीचर बदल रही हैं आदिवासी बच्चों का जीवन

सुनीता मनोज पेशे से एक टीचर हैं. लेकिन केरल के इडुक्की ज़िले के अलमपेट्टी और एडमलक्कुडी बस्तियों के आदिवासी छात्रों के लिए उनकी अहमियत एक टीचर से कहीं ज़ायादा है.

42 साल की सुनीता ने पिछले 18 सालों में अलग-थलग मुदुवान और पहाड़ी पुलया आदिवासी समुदायों के लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाया है. यह उन्हीं की मेहनत है कि इन बस्तियों में से एट्टूमानूर के मॉडल रेज़िडेंशियन स्कूल में दाखिला लेने वाले आदिवासी छात्रों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.

सुनीता मानती हैं कि शिक्षा बदलाव का सबसे बड़ा हथियार है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, “शिक्षा ही है जो जनजातियों को आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से सशक्त बनाएगी.”

कंदलूर में मिशनवायल की निवासी सुनीता ने 2004 में एडमलक्कुडी के कवक्कट्टुकुडी में एक मल्टी ग्रेड लर्निंग सेंटर (MGLC) में एक अस्थायी शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया. तब से आदिवासी माता-पिताओं को अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए मनाना ही उनका मिशन रहा है.

वो घर-घर जाकर परिवारों से बात करती थी, और बच्चों को पढ़ाती थीं. उस समय बस्ती में पास एक उचित स्कूल भी नहीं था. वह एक कामचलाउ शेड में बच्चों के लिए क्लास लेती थीं, और इसके लिए सरकार से उन्हें वॉलंटियरिंग के नाम पर 1,500 रुपए मिलते थे.

सुनीता को शुरुआत में बस्ती के बड़ों को मनाने में मुश्किल ज़रूर हुई, लेकिन कवक्कट्टुकुडी में अपने पहले साल में वह 24 बच्चों को स्कूल तक लाईं.

2012 में, सुनीता मरयूर के पास आलमपेट्टी के MGLC में पढ़ाने गईं. वहां की बस्ती में सुविधाओं की कमी की वजह से कई बच्चे चंपक्काडु के एक सरकारी स्कूल में जाते थे. हालांकि, जल्द ही, वह उन सभी को एमजीएलसी में वापस लाने में सफल रहीं. यहां अब कक्षा 1 से 4 तक के 42 छात्र हैं.

सुनीता की सालों की मेहनत रंग लाई है. उनकी छात्रा दिव्या ने इस साल पूरे ए प्लस ग्रेड के साथ मैट्रिक की परीक्षा पास की है. वो ऐसा करने वाली आलमपेट्टी की पहली निवासी हैं. वो कहती हैं, “महिला शिक्षा एक अलग मामला है. मुझे माता-पिता को समझाने में काफी समय लगा कि आदिवासी लड़कियों को जब तक वो खुद चाहें, तब तक शिक्षा देने की ज़रूरत है.”

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इडुक्की में 62 MGLC में 78 शिक्षक पढ़ा रहे हैं. सरकार के MGLCs को खत्म करने के फ़ैसले के साथ, इन शिक्षकों को इडुक्की के सरकारी संस्थानों में ही अंतिम ग्रेड के पद देने का वादा किया गया है.

अपने पेशे को छोड़ने का दर्द सुनीत को है, लेकिन वो MGLC को बंद करने के सरकार के फ़ैसले का स्वागत करती हैं, क्योंकि वो मानती हैं कि आदिवासी छात्रों के विकास के लिए उन्हें उच्च तकनीक वाली शैक्षिक सुविधाएं और बाहरी दुनिया से ज़्यादा से ज़्यादा संपर्क की ज़रूरत है.

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