गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को आदिवासी समुदाय के लिए बीजेपी और उसके विचारक आरएसएस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द ‘वनवासी’ पर सवाल उठाया और इसकी तुलना ‘आदिवासी’ से की जिसका इस्तेमाल कांग्रेस उनके लिए करती है.
राहुल गांधी आदिवासी बहुल महुवा विधानसभा क्षेत्र में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, “बीजेपी के लोग आपको आदिवासी नहीं कहते हैं. वह आपको क्या बुलाते है? वनवासी. ये नहीं कहते कि आप हिन्दुस्तान के पहले मालिक हो. वे आपसे कहते हैं कि आप जंगलों में रहते हैं, इसका मतलब वे नहीं चाहते कि आप शहरों में रहें, आपके बच्चे इंजीनियर बनें, डॉक्टर बनें, विमान उड़ाएं, अंग्रेजी में बात करें.”
वहीं गांधी ने बुलढाणा जिले में आदिवासी महिला वर्कर्स सम्मेलन संबोधित करते हुए कहा, ”कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों के लिए वनवासी शब्द का प्रयोग किया, इन दोनों शब्दों का मतलब बिल्कुल अलग है. आदिवासी शब्द कहता है कि आप हिंदुस्तान के असली मालिक हैं और वनवासी शब्द कहता है कि आप सभी जंगल में रहते हैं.”
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार के आदिवासियों को अधिकार देने वाले कानून को केंद्र सरकार ने कमजोर किया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, वन अधिकार अधिनियम, भूमि अधिकार, पंचायत राज अधिनियम और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे कानूनों कमजोर कर रही है. साथ ही दावा किया कि सरकार आने पर हम इस कानून को मजबूत करेंगे.
आदिवासी या वनवासी?
भारत का संविधान जनजातियों का वर्णन करने के लिए शेड्यूल्ड ट्राइब्स या “अनुसुचित जनजाति” शब्द का उपयोग करता है. कई आदिवासी लोग खुद को ‘आदिवासी’ ही कहलाना पसंद करते हैं, जिसका मतलब है ‘आदि निवासी’. इसका इस्तेमाल सार्वजनिक बातचीत, दस्तावेजों, किताबों और मीडिया में किया जाता है.
वहीं ‘वनवासी’ का मतलब है जंगलों में रहने वाले. इस शब्द का इस्तेमाल संघ परिवार करता है जो ईसाई मिशनरियों के चंगुल से बचाने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर काम करता है. मुख्य जाति संरचना के बाहर पारंपरिक रूप से ये लोग एक यूनिट के तौर पर रहते हैं. हाशिये पर रहने वाले आदिवासी समुदाय के साथ ‘वनवासी’ शब्द का इस्तेमाल उनकी अलग पहचान बताने के लिए किया गया था.
आदिवासी समुदायों की बदलती संस्कृति और हिंदू धर्म से उनकी दूरी से चिंतित होकर रमाकांत केशव देशपांडे ने दूसरे सरसंघचालक एम एस गोलवलकर के साथ मिलकर 26 दिसंबर, 1952 को छत्तीसगढ़ के जशपुर में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम (एबीवीकेए) की स्थापना की थी.
हालांकि शुरुआत में इसका मुख्य मकसद आदिवासियों का हिंदुकरण था. संघ का मानना है कि यह राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी था. समुदाय के बीच संघ की गतिविधि का फायदा बीजेपी को चुनाव के दौरान हमेशा मिला है.
वनवासी शब्द को साल 1952 में लाया गया था. जो लोग जंगलों में रहते हैं, उन्हें पारंपरिक रूस से वनवासी कहा जाता है. साल 1930 में ब्रिटिश आदिवासी शब्द लेकर आए थे. अमेरिका में आदिवासियों को उनकी पहचान दिलाने के लिए आदिवासी शब्द का प्रयोग किया गया, क्योंकि वे हाशिए पर थे. लेकिन वनवासी शब्द बताता है कि वे जंगलों के निवासी हैं.
यद्यपि प्राथमिक ध्यान आदिवासियों के ‘हिन्दुकरण’ पर था, जिसे संघ ने राष्ट्रीय एकीकरण और उनकी पहचान और संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यक बताया था. समुदाय के बीच संघ की गतिविधियों ने हमेशा भाजपा को चुनावी लाभ हासिल करने में मदद की है.
आरएसएस नेता राम माधव के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस लिखता है, “हम उन्हें वनवासी कहते हैं. हम उन्हें आदिवासी नहीं कहते क्योंकि आदिवासी का मतलब मूल निवासी या आदिवासी होता है, जिसका अर्थ है कि बाकी सभी बाहर से हैं. लेकिन संघ का मानना है कि हम सभी इस महाद्वीप के मूल निवासी हैं.”
राम माधव ने कहा कि आर्यन आक्रमण सिद्धांत कहता है कि आर्य मध्य एशिया में कहीं से थे और पहले से ही बसे हुए भारतीय उपमहाद्वीप में चले गए थे लेकिन हमेशा आरएसएस द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था. उन्होंने कहा, “हम आदिवासियों के लिए संवैधानिक शब्द अनुसुचित जनजाति या शेड्यूल्ड ट्राइब्स के साथ ठीक हैं.”
वहीं वर्षों तक आदिवासियों के बीच काम करने वाले संघ के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने बताया कि वनवासी शब्द की स्थापना 1952 में हुई थी.
चौहान कहते हैं, “जो लोग जंगलों में रहते थे उन्हें परंपरागत रूप से वनवासी कहा जाता था. रामायण में भी यह संदर्भ जंगलों में रहने वाले समुदायों की पहचान के लिए है. वनवासी वनवासियों के बारे में सही अवधारणा बताते हैं और यह गर्व का शब्द है.”
चौहान ने कहा कि आदिवासी या ‘आदिवासी’ शब्द अमेरिकी संदर्भ में अधिक उपयुक्त था. उन्होंने समझाया, “आदिवासी’ शब्द 1930 के दशक में अंग्रेजों द्वारा लाया गया था. आदिवासी शब्द का प्रयोग करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन भारत के संदर्भ में यह गलत है. अमेरिका में आदिवासियों को उनकी पहचान दिलाने के लिए आदिवासी शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे हाशिए पर थे. लेकिन वनवासी शब्द सरलता से बताता है कि वे वनवासी हैं.”
राहुल गांधी के इस दावे के बारे में कि इस शब्द का अर्थ है कि उन्हें “जंगलों में रहना चाहिए” इस बारे में चौहान ने कहा, “अगर आपको भारतवासी कहा जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको सिर्फ भारत में रहना चाहिए. यह सिर्फ एक राजनीतिक कहानी है जिसे गांधी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि यह अवधारणा कि जंगलों में रहने वाले लोग सुसंस्कृत नहीं हो सकते “पश्चिमी” थी. यह एक पश्चिमी आख्यान है कि जो लोग जंगलों में रह रहे हैं उनके पास संस्कृति नहीं हो सकती है. भारत में ऐसा कभी नहीं था. हम मानते हैं कि हमारी संस्कृति वनवासियों से उपजी है. पहले के समय में जो गाँव में रहते थे उन्हें ‘ग्रामवासी’, शहरों में रहने वाले को ‘नगरवासी’ और जो जंगलों में रहते थे उन्हें ‘वनवासी’ कहते थे.
चौहान ने यह भी तर्क दिया कि संघ ने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना “वनवासियों की संस्कृति की रक्षा और संरक्षण करने के लिए की थी ताकि वे देश के विकास में योगदान दे सकें”, न कि केवल “धर्मांतरण प्रक्रिया को रोकने के लिए”.
क्या यह विवाद नया है?
आदिवासी बनाम वनवासी शब्द को लेकर चल रहे विवाद के बीच कई लोग कहते हैं, जरूरी नहीं कि आदिवासी समुदाय जंगलों में ही रहे. संविधान सभा की बहस के दौरान, हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा, जो बाद में संविधान सभा में आदिवासी प्रतिनिधि बने, ने ‘आदिवासी’ शब्द का उपयोग करने पर जोर दिया और सवाल किया कि हिंदी में अनुवाद करने पर ‘आदिवासी’ शब्द ‘बनजाति’ क्यों बन गया.
उन्होंने कहा था कई समितियों की ओर से किए गए किसी भी अनुवाद में ‘आदिवासी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है. यह क्या है? मैं आपसे पूछता हूं ऐसा क्यों नहीं किया गया. ‘आदिवासी’ शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया और ‘बनजाति’ शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है? हमारी जनजातियों के अधिकांश सदस्य जंगलों में नहीं रहते….
उन्होंने कहा कि मेरी इच्छा है कि आप अपनी अनुवाद समिति को निर्देश जारी करें कि अनुसूचित जनजातियों का अनुवाद ‘आदिवासी’ होना चाहिए. आदिवासी शब्द में कृपा है. मुझे समझ में नहीं आता कि बनजाति की इस पुरानी अपमानजनक उपाधि का उपयोग क्यों किया जा रहा है, हाल तक इसका मतलब एक असभ्य जंगली था.
आरएसएस में भी एक तबका ऐसा लगता है जो “वनवासी” शब्द को अप्रचलित मानता है.
मध्य भारत में आदिवासियों के बीच काम करने वाले एक आरएसएस स्वयंसेवक ने कहा,”वास्तव में, कई स्वयंसेवकों ने वनवासी शब्द का उपयोग करना बंद कर दिया है और हमारे आश्रम अब केवल कल्याण आश्रम के रूप में जाने जाते हैं. मुख्यतः क्योंकि हमारे काम में तटीय जनजातियाँ भी शामिल हैं. आदिवासियों के बीच कुछ लोग वनवासी के रूप में जाना नहीं चाहते हैं उनका दावा है कि यह शब्द “जंगली” जैसा लगता है.”
हालांकि, राम माधव ने कहा कि वनवासी की कोई समीक्षा की योजना नहीं है लेकिन आरएसएस संविधान में प्रयुक्त जनजाति शब्द को स्वीकार करता है.
(Rahul Gnadhi File Photo)