असम के ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AASAA) के सैकड़ों सदस्यों ने सोमवार को डिब्रूगढ़ में डीसी कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें राज्य की आदिवासी आबादी के लिए एसटी का दर्जा देने की मांग की गई.
ये आदिवासी वे हैं जो चाय बागानों में काम करने के लिए किसी ज़माने में असम आए थे. इन आदिवासियों की अनुमानित संख्या लगभग 60 लाख है.
इन प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ नारे लगाए और एसटी श्रेणी में उनके उचित समावेश की मांग की. इसके साथ ही भूमि अधिकार और उचित मजदूरी की मांग भी की.
इस विरोध प्रदर्शन में चाय जनजाति और कछार के अन्य आदिवासी समुदायों के छात्रों ने हिस्सा लिया.
उन्होंने डीसी बिक्रम कैरी को केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम को संबोधित एक ज्ञापन भी सौंपा.
उनकी अन्य मांगों में भूमि अधिकार सुरक्षित करना और असम सरकार द्वारा शुरू की गई बसुंधरा योजना के तहत लाभ प्राप्त करना शामिल था.
प्रदर्शनकारियों ने संविधान के 125वें संशोधन विधेयक (2019) से भूमि अधिकार प्रस्तावों को शामिल करने के लिए संशोधनों की भी मांग की, जो असम के मूल निवासियों को एसटी का दर्जा, स्वायत्त परिषदों में मतदान का अधिकार, आरक्षित श्रेणियों के अधिकार और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वन क्षेत्रों में रहने वालों को भूमि पट्टे (शीर्षक) जारी करने का अधिकार देगा.
इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर ज़ोर डाला कि असम के मूल निवासियों ने मिशन बसुंधरा 1.0 और 2.0 के दौरान उचित दस्तावेजों के साथ भूमि पट्टों के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था लेकिन उन्हें अभी तक ये नहीं मिले हैं.
उन्होंने अधिकारियों से इन मूल निवासियों को भूमि पट्टे वितरित करने के लिए कार्रवाई करने का आग्रह किया.
AASAA के प्रवक्ता ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि हम यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं फिर भी बांग्लादेश से आए नए लोग आधार और मतदाता पहचान पत्र प्राप्त कर सकते हैं और पट्टा भूमि खरीद सकते हैं. इस बीच हमारे पास अभी भी उस भूमि का पट्टा नहीं है जिस पर हम सदियों से रह रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि बसुंधरा 2.0 और अन्य पहल आई और चली गईं लेकिन हमें अभी भी अपनी भूमि का पट्टा नहीं मिला है. इसलिए आज हम हिमंत बिस्वा सरमा और नरेंद्र मोदी से अपील करते हैं कि वे हमें भूमि का पट्टा और उचित मजदूरी प्रदान करें, जैसा कि वे वहां (ब्रह्मपुत्र घाटी) करते हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि हम उन्हीं चुनावों में हिस्सा लेते हैं और हम सरकार से हमारी मांगों को सुनने का आग्रह करते हैं. 200 रुपये की दैनिक मजदूरी पर्याप्त नहीं है. हम उससे अपने कॉलेज की फीस कैसे भरेंगे? हमारे भी सपने हैं लेकिन इन मुद्दों के कारण, हमें चाय बागानों में मज़दूर के रूप में काम करने और पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. हम विलुप्त होने के कगार पर हैं. कृपया आदिवासियों को बचाएं.
प्रवक्ता ने यह भी चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे सरकार के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन को और भी बड़े स्तर पर ले जाएंगे.
इस पूरे मामले में सबसे बड़े अफ़सोस की बात ये है कि असम में सत्ताधारी पार्टी अपने चुनवा घोषणा पत्र में दो बार यह वादा कर चुकी है कि इन आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाएगा.
लेकिन सरकार इस वादे को पूरा नहीं कर रही है.