एकता परिषद की तमिलनाडु इकाई ने राज्य विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र एक आदिवासी घोषणापत्र (Manifesto) निकाला है. इसमें तमिलनाडु के आदिवासी समुदायों की मांगों को सूचीबद्ध किया गया है.
घोषणापत्र की कॉपियां सरकारी विभागों और ऐसे सभी क्षेत्रों में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को दी जाएंगी, जहां आदिवासी आबादी रहती है. उम्मीद है कि इस घोषणापत्र की मदद से राज्य की अगली सरकार आदिवासी, खानाबदोश, और जंगल में रहने वाले दूसरे समुदायों के सतत विकास के लिए नीतियां बना सकेगी.
एकता परिषद के कार्यकर्ता ने एक अखबार को बताया कि इस घोषणापत्र को आदिवासी समुदायों के साथ परामर्श के बाद तैयार किया गया है. इस बातचीत में अन्नामलई हिल्स, डिंडीगुल, तेनी और मदुरै में रहने वाले आदिवासी शामिल थे.
इस मैनिफ़ेस्टो में सामने आई प्रमुख बातों में पहचान के मुद्दे, पीवीटीजी (PVTG) या आदिम जनजाति की श्रेणी में कुछ समुदायों को शामिल किया जाना, और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिनासियों को उनके अधिकार मिलना शामिल हैं.
केरल में जहां हिल पुलया (Hill Pulaya) को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है, इस समुदाय को तमिलनाडु में अनुसूचित जाति (SC) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. इसके अलावा नरिकुरवा समुदाय मोस्ट बैकवर्ड क्लास (Most Backward Class) की श्रेणी में शामिल हैं, जबकि उनकी अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पुरानी है.
तमिलनाडु में निलगिरी की पहाड़ियों में रहने वाले सिर्फ़ छह आदिवासी समुदाय ही पीवीटीजी कहे जाते हैं. जहां एक तरफ़ केरल में काड़र समुदाय पीवीटीजी की सूची में आता है, तमिलनाडु के काड़र समुदाय को यह विशिष्टता हासिल नहीं है.
दूसरी मांगों में महत्वपूर्ण हैं आवेदन के एक हफ़्ते के अंदर सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी करना, वन अधिकार अधिनियम के तहत घर, कृषि और सामुदायिक अधिकारों का मिलना, उन आदिवासियों के लिए स्थायी नौकरी जो जंगल में आग और अवैध शिकार से लड़ते हैं, टाइगर रिज़र्व के अदंर भी बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं, और आंगनवाड़ी और राशन की दुकानों का होना.
बीजेपी का घोषणापत्र
आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने भी सोमवार को अपना घोषणापत्र जारी किया. इसमें पार्टी ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST), किसानों और मछुआरों पर विशेष ध्यान देने का दावा किया है.
आदिवासी समुदायों के लिए घोषणापत्र में किए गए वादों में बडगा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाना, काम के लिए पलायन करने वाले एसटी लोगों को जाति प्रमाण पत्र जारी करना, और अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं के लिए गांवों और अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के योग्य खिलाड़ियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना शामिल हैं.
तमिलनाडु में 1.1 प्रतिशत आदिवासी आबादी है, जिसमें कुल 36 समुदाय हैं.