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आदिवासियों को बीमार और बूढ़ी गाय दी गईं, नीलगिरी में सबसे ग़रीब लूटा गया

बूचड़खाने में कटने के लिए जाने वाली गायों को सस्ते में ख़रीदकर आदिवासी लोगों में बाँट दिया था. इस मामले के सामने आने के बाद ज़िला प्रशासन ने एक कमेटी का गठन किया. इस कमेटी ने पाया कि आदिवासियों को बीमार और बूढ़ी गाय देने के आरोप सही हैं.

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में प्रशासन द्वारा आदिवासियों को बूढ़ी और बीमार गाय देने का मामला सामने आया है. प्रशासन का कहना है कि इस घटना के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी को उनके पद से हटा दिया गया है. इसके साथ ही इस अधिकारी के ख़िलाफ़ विभागीय कार्रवाई करने का आदेश भी दिया गया है.

रिपोर्ट्स के अनुसार प्रशासन ने नीलगिरी के आदिवासियों को दुधारू गाय देने की एक योजना बनाई थी. लेकिन इन आदिवासियों को दुधारू की बजाए बूढ़ी और बीमार गाय दे दी गईं. इस वजह से इन आदिवासियों को इस योजना से किसी लाभ की बजाए नुक़सान ही हुआ, क्योंकि इन गायों के चारे पर किसानों को पैसा ख़र्च करना पड़ रहा है.

जानकारी मिली है कि संबंधित अधिकारी ने बूचड़खाने में कटने के लिए जाने वाली गायों को सस्ते में ख़रीदकर आदिवासी लोगों में बाँट दिया था. इस मामले के सामने आने के बाद ज़िला प्रशासन ने एक कमेटी का गठन किया. इस कमेटी ने पाया कि आदिवासियों को बीमार और बूढ़ी गाय देने के आरोप सही हैं. कमेटी ने यह भी पाया कि इनमें से कुछ गाय मर भी चुकी हैं, क्योंकि वो पहले से ही बीमार थीं.

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले की पहाड़ियों में कई आदिवासी समूह रहते हैं. ये आदिवासी समूह पीवीटीजी की श्रेणी में रखे गए हैं. यानि ये आदिम जनजातियाँ हैं. इनके संरक्षण और विकास के लिए सरकार अलग से पैसा ख़र्च करती है. 

इन आदिवासियों में से ज़्यादातर यहाँ के चाय बाग़ानों में मज़दूरी करते हैं. इन पहाड़ियों पर चाय बाग़ानों के बाद जंगल से चलने वाली इनकी ज़िंदगी अब पूरी तरह से बदल गई है.

हाल ही में एक ग़ैर सरकारी संस्था ने सर्वे में पाया था कि इन आदिवासियों में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. इसकी वजह ग़रीबी और अवसाद को बताया गया था. 

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