असम के ऑल आदिवासी छात्र संघ (AASAA) ने बुधवार को डिब्रूगढ़ में जिला आयुक्त कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया और राज्य के आदिवासी समुदाय को लाभ पहुंचाने वाली कई मांगों पर जोर दिया.
प्रदर्शनकारियों ने असम की आदिवासी आबादी के लिए अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) का दर्जा, भूमि अधिकार, सही जाति प्रमाण पत्र और चाय बागान श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी की मांग सहित लंबे समय से लंबित मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया.
प्रमुख मांगों में से एक असम के आदिवासी लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देना था. जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे उन्हें सरकारी संसाधनों और अवसरों तक अधिक पहुँच मिलेगी.
आसा के डिब्रूगढ़ जिला अध्यक्ष सिबा कुर्मी ने कहा, “आदिवासी समुदाय को ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रखा गया है. एसटी का दर्जा देना न केवल हमारी पहचान की मान्यता है बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक आवश्यक कदम है.”
एसटी दर्जे के अलावा AASAA ने असम के चाय बागानों, वन क्षेत्रों और गांवों में रहने वाले सभी आदिवासी लोगों के लिए भूमि अधिकार की भी मांग की.
उनका कहना है कि कई आदिवासी परिवार पीढ़ियों से इन जमीनों पर रह रहे हैं लेकिन उनके पास कानूनी स्वामित्व नहीं है, जिससे उन्हें बेदखली और विस्थापन का ख़तरा है.
AASAA द्वारा की गई एक अन्य महत्वपूर्ण मांग यह है कि आदिवासी छात्रों को शैक्षणिक अवसरों और छात्रवृत्तियों तक पहुंच प्रदान करने के लिए सही जाति प्रमाण पत्र दिया जाए.
आसा ने कहा कि कई छात्रों को उनके दस्तावेजों में विसंगतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिससे उनकी शैक्षणिक और व्यावसायिक संभावनाओं में बाधा आती है.
प्रदर्शनकारियों ने बढ़ती महंगाई और कामकाजी स्थिति का हवाला देते हुए चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम दैनिक मजदूरी 250 रुपये से बढ़ाकर 550 रुपये करने की मांग की.
आसा ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (एमडब्ल्यू अधिनियम), 1948 के उचित कार्यान्वयन का भी आह्वान किया.
विरोध प्रदर्शन के अंत में सिबा कुर्मी और महासचिव मोनुज उरांव द्वारा हस्ताक्षरित एक ज्ञापन जिला आयुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को भेजा गया.
असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की मजदूरी बहुत कम : CAG
जहां एक तरफ AASAA ने चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम दैनिक मजदूरी बढ़ाने की मांग की है.
वहीं कॉम्प्ट्रॉलर एंड ऑडिटर जनरल (Comptroller and Auditor General) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की मजदूरी बहुत कम है. CAG का कहना है कि श्रम कानूनों और श्रमिक कल्याण प्रावधानों के क्रियान्वयन में कई कमियां और चिंता के क्षेत्र हैं.
साल 2015-16 से 2020-21 की अवधि के लिए ‘चाय जनजाति के कल्याण के लिए योजनाओं के क्रियान्वयन’ पर परफॉर्मेंस ऑडिट में कहा गया है कि कम आय और शिक्षा की कमी राज्य में श्रमिकों के समग्र विकास में प्रमुख बाधाएं रही हैं.
ऑडिट चार ज़ोन कछार, डिब्रूगढ़, नागांव और सोनितपुर में किया गया था. चार सैंपल ज़ोन में 390 चाय बागान हैं, जिनमें से 40 बागानों (10 फीसदी) का चयन बागानों के आकार और कार्यरत श्रमिकों की संख्या के आधार पर किया गया था.
अभिलेखों की जांच के अलावा इस प्रैक्टिस में चयनित बागानों में 590 श्रमिकों के इंटरव्यू भी शामिल थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चाय जनजाति कल्याण विभाग (TTWD) ने श्रमिकों के मुद्दों को हल करने की कोशिश की लेकिन बुनियादी सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के बिना और उनकी पहल को अव्यवस्थित तरीके से लागू किया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चाय बागानों में श्रमिकों को मिलने वाला वेतन बहुत कम है और असम सरकार ने चाय बागान अधिनियम, 1948 के मुताबिक न्यूनतम वेतन तय नहीं किया है.
इसमें यह भी कहा गया है कि श्रमिक राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अनुसूचित रोजगार का हिस्सा नहीं हैं. जिसके परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम मजदूरी मानक और परिवर्तनीय महंगाई भत्ते का लाभ नहीं मिलता है.
श्रम एवं कल्याण विभाग के सचिव ने कैग को बताया कि जब राज्य सरकार ने एमडब्ल्यू अधिनियम के मुताबिक वेतन बढ़ाने की पहल की तो इसे अदालत में चुनौती दी गई और इसलिए वेतन में जितनी चाहिए थी उतनी वृद्धि नहीं की जा सकी.
रिपोर्ट में बराक और ब्रह्मपुत्र घाटी के श्रमिकों के बीच वेतन में असमानता को भी रेखांकित किया गया और कहा गया कि श्रम विभाग इसके लिए कोई औचित्य नहीं दे सका.
इसमें कहा गया है कि बराक घाटी के श्रमिकों को ब्रह्मपुत्र घाटी के श्रमिकों की तुलना में कम से कम 10 प्रतिशत कम मजदूरी मिल रही है और सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कभी हस्तक्षेप नहीं किया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 की मजदूरी दरों के मुताबिक, असम के चाय श्रमिकों को तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य चाय उत्पादक राज्यों की तुलना में सबसे कम मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है.
इसने नोट किया कि हालांकि असम में चाय श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान थोड़ा-बहुत नकद और थोड़ा-बहुत वस्तु के रूप में किया जाता है. लेकिन ऐसी व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा दिया गया प्राधिकरण रिकार्ड में उपलब्ध नहीं है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम विभाग को मजदूरी के भुगतान के शुरू होने के वर्ष और राज्य के उद्देश्य के बारे में भी जानकारी नहीं थी.
इसमें कहा गया है कि भुगतान की जाने वाली योग्य वस्तुओं की सूची न तो सरकार द्वारा निर्धारित की गई थी और न ही इन वस्तुओं की लागत की गणना करने की प्रणाली थी. नकद या वस्तु के रूप में मजदूरी का भुगतान एमडब्ल्यू अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में नहीं था.
कैग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि असम चाय कर्मचारी श्रम कल्याण बोर्ड ने कोई अनिवार्य कल्याणकारी गतिविधियां नहीं कीं और 2015-20 के दौरान इसके लिए वहन किए गए 85 प्रतिशत खर्च प्रशासनिक खर्चों से संबंधित हैं.
2015-16 से 2020-21 के दौरान टीटीडब्ल्यूडी के डायरेक्टर ने 600.19 करोड़ रुपये के बजट के साथ 187 कल्याणकारी योजनाओं की योजना बनाई थी. जिनमें से 365.60 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के मुकाबले 210.65 करोड़ रुपये की लागत से सिर्फ 82 योजनाओं में वास्तविक कार्यान्वयन किया गया था.
राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित विनिर्देशों की तुलना में अस्पतालों, स्कूलों, कैंटीन, क्रेच, मनोरंजन क्लब और आवास जैसी सुविधाओं में कमियां भी ऑडिटर ने देखी.