नरेंद्र मोदी सरकार ने मंगलवार को संसद में पेश किए गए केंद्रीय बजट 2024-25 के ज़रिए एक बार फिर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों को ध्यान में रखने का संदेश दिया है.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लगातार तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. जिसमें 25 हज़ार से अधिक ग्रामीण बस्तियों को पक्की सड़क संपर्क जैसी बुनियादी ज़रूरत शामिल है.
वित्त मंत्री सीतारमण ने आदिवासी बहुल गांवों में आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए एक नई पहल, “प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान” की घोषणा की.
उन्होंने कहा, “हम आदिवासी बहुल गांवों और आकांक्षी जिलों में आदिवासी परिवारों के लिए ‘प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान’ शुरू करेंगे. इससे 63 हज़ार गांव लाभान्वित होंगे और पांच करोड़ आदिवासी लोग लाभान्वित होंगे.’’
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने कहा, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान की घोषणा के लिए आभारी हैं. यह पहल पूरे भारत में आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए एकीकृत सामाजिक-आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक अवसरों के सृजन के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है.”
इससे पहले मोदी सरकार द्वारा पिछले नवंबर में झारखंड के खूंटी में 24,000 करोड़ रुपये के “प्रधानमंत्री जनजाति न्याय महा अभियान (PM-JANMAN)” की घोषणआ की गई थी.
पीएम-जनमन योजना का उद्देश्य देश भर के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को आवास, सड़क, चिकित्सा सुविधाएं आदि जैसी बुनियादी सेवाएं प्रदान करना है.
अपने पहले दो कार्यकालों में मोदी सरकार ने आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए “राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन” और “एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों” की संख्या बढ़ाकर 740 करने सहित कई पहल शुरू कीं.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मिले 13 हज़ार करोड़
वहीं बजट 2024 में जनजातीय मामलों के मंत्रालय को 13,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछली बार दिए गए आवंटन से 539 करोड़ रुपये अधिक है.
आवासीय विद्यालयों में एसटी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) को 6,399 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो पिछले साल के आवंटन से 456 करोड़ रुपये अधिक है.
पिछले साल इस योजना के आवंटन को काफी हद तक घटाकर 2,471.81 करोड़ रुपये कर दिया गया था.
एसटी छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के आवंटन में भी वृद्धि देखी गई. 1,970.77 करोड़ रुपये से आवंटन बढ़ाकर 2,432.68 करोड़ रुपये कर दिया गया.
इसके अलावा, पीएम जनजातीय विकास मिशन (PMJVM), जो एसटी समुदायों के बीच आजीविका और उद्यमिता को बढ़ावा देता है. उसके आवंटन में इस बजट में 136.17 करोड़ रुपये की कटौती की गई है.
केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रुपये आवंटित करने के फैसले का स्वागत किया जा सकता है.
वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़ रुपये का आवंटन पिछले साल से 12 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है, एक सकारात्मक कदम है.
हालांकि, यह अभी भी ग्रामीण भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिए आदर्श फंडिंग से कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली विशाल आबादी और उनके सामने मौजूद महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य चुनौतियों को देखते हुए, व्यापक और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए 8-10 लाख करोड़ रुपये के करीब अधिक आवंटन की आवश्यकता होगी.
सड़क और आवास पर फोकस
वित्त मंत्री ने “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)” के फेज-IV को लॉन्च करने की योजना की घोषणा है. इस घोषणा के अनुसार “25,000 ग्रामीण बस्तियों को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान की जा सके, जो अपनी जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए पात्र हो गई हैं.”
ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, इस संबंध में जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी मांगी जाएगी.
पीएमजीएसवाई का फेज-I साल 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था.
अब तक इस योजना के तहत 1.62 लाख से अधिक बस्तियों को कवर करते हुए सात लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़क नेटवर्क विकसित किया गया है.
अंतरिम बजट में सीतारमण ने PMAY के तहत तीन करोड़ घरों को मंजूरी देने की घोषणा की थी, जिनमें से दो करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में होंगे. पीएमएवाई-जी के लिए 2024-25 के लिए बजट आवंटन 54,500 करोड़ रुपये है.
बजट भाषण में “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS)” का कोई उल्लेख नहीं था. इस योजना के लिए आवंटन (86,000 करोड़ रुपये) वही रहा जो इस साल की शुरुआत में अंतरिम बजट में उल्लेख किया गया था.
MGNREGA पोर्टल के अनुसार, 23 जुलाई तक इस योजना पर कुल खर्च 37, 407 करोड़ रुपये था. 2023-24 में सृजित 309.02 करोड़ व्यक्ति-दिवसों के मुकाबले इस साल अब तक 113.62 करोड़ व्यक्ति-दिवस सृजित किए गए हैं.
सोमवार को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में MGNREGA में महिलाओं की भागीदारी 2019-20 में 54.8 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 58.9 प्रतिशत हो गई है.
इस योजना के लिए बजट आवंटन जमीनी स्तर पर काम की मांग के अनुरूप नहीं है, खासकर इस योजना के तहत बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा रोजगार की मांग के साथ.
वामपंथी-संबद्ध अखिल जनवादी महिला समिति (AIDWA) ने एक बयान में कहा, “2022-2023 में सरकार ने इस योजना पर करीब 90 हज़ार करोड़ रुपये खर्च किए, भले ही उसने बेहद कम आवंटन किया हो. ग्रामीण क्षेत्रों में काम की बढ़ती मांग के कारण सरकार को यह खर्च बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस बजट में इस योजना को 86 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2022-23 के वास्तविक व्यय से 4000 करोड़ रुपये कम है.”
आदिवासियों के संदर्भ में मोदी सरकार की बजट घोषणाओं को देखें तो ऐसा अहसास होता है कि सरकार आदिवासी विकास के लिए प्रतिबद्ध है.
लेकिन जब पिछले बजट की घोषणाओं की समीक्षा की जाती है तो यह पता चलता है कि सरकार इन घोषणाओं को लागू करने में उतनी गंभीर नहीं है.
मसलन एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों की संख्या 740 करने और इन स्कूलों में 38000 कर्मचारियों और की भर्ती के मामले में यह पता चलता है कि सरकार समय सीमा के भीतर संतोषजनक काम भी नहीं कर पाई है.
संसद की स्थाई समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह तथ्य रखा है. सरकार ने स्थाई समिति को यह वादा किया था कि साल 2025 तक सभी EMRS स्कूलों को बना दिया जाएगा.
लेकिन ज़मीन पर जो हालात हैं उससे ऐसा नहीं लगता है कि यह काम साल 2025 तक भी पूरा हो सकेगा.
पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले पीएम जनमन योजना की घोषणा करते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह वादा किया था कि आदिम जनजाति (PVTG) के सभी परिवारों को पक्का मकान दिया जाएगा.
लेकिन मुश्किल ये है कि सरकार के पास आदिम जनजाति के परिवारों की सही सही संख्या ही मौजूद नहीं है.
बजट में ग्रामीण इलाकों या आदिवासी समुदायों के लिए घोषणाओं को लागू करने के लिए यह ज़रूरी है कि उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के आंकड़े सरकार के पास मौजूद रहें.
लेकिन इस मोर्च पर सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई है. आदिवासी विकास के लिए जो धन आवंटित भी किया जाता है, उसका भी बड़ा हिस्सा अलग अलग मंत्रालय ऐसे कामों पर ख़र्च कर देता है जिसका सीधा लाभ आदिवासियों को नहीं मिल पाता है.