HomeAdivasi Daily75 आदिवासी जिलों में टीबी एक मुसीबत, जल्दी छुटकारे की रणनीति

75 आदिवासी जिलों में टीबी एक मुसीबत, जल्दी छुटकारे की रणनीति

अधिकारियों ने कहा कि जिन जिलों का चयन किया गया है, उनमें आदिवासी आबादी का अनुपात अधिक है, जिन्होंने अभी तक टीबी पर अंकुश लगाने में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है और जिन्होंने केस-डिटेक्शन अभियान के दौरान अपेक्षाकृत अधिक टीबी के मामलों की सूचना दी.

पिछले छह महीनों में आदिवासी आबादी के बीच टीबी (Tuberculosis) के सक्रिय मामलों का पता लगाने के लिए अभियान चलाने के बाद, जनजातीय मामलों के मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय टीबी डिवीजन ने अब 75 आदिवासी जिलों की पहचान की है जहां अगले कुछ महीनों में उन्हें टीबी मुक्त बनाने का उद्देश्य है.

देश के 174 आदिवासी जिलों में टीबी के सक्रिय मामलों का पता लगाने के लिए यह खास अभियान इस साल 7 जनवरी को शुरू हुआ, जिसके तहत 68 हज़ार से अधिक गांवों में घर-घर जाकर स्क्रीनिंग की गई.

आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि इन गांवों में 1 करोड़ 3 लाख से अधिक व्यक्तियों की मौखिक जांच के आधार पर 3 लाख 82 हज़ार 811 लोगों में टीबी होने की पहचान की गई थी.

इनमें से 2 लाख 79 हज़ार 329 (73 फीसदी) नमूनों की टीबी के लिए जांच की गई और 9,971 लोग टीबी के लिए पॉजिटिव पाए गए जिनका भारत सरकार के प्रोटोकॉल के अनुसार इलाज किया गया.

अभियान के निष्कर्षों पर चर्चा करने के लिए इस सप्ताह के शुरू में आयोजित एक सम्मेलन में, जनजातीय मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवल जीत कपूर ने कहा कि आंकड़ों से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि आदिवासी आबादी अन्य जनसंख्या समूहों की तुलना में टीबी और अन्य श्वसन रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील है.

24 अगस्त को आयोजित कॉन्क्लेव में आगे की राह पर चर्चा करते हुए स्वास्थ्य और जनजातीय मामलों के मंत्रालय, दोनों ने चयनित 75 आदिवासी जिलों में जहां टीबी के ज्यादातर मामलों की पहचान की गई है वहां के लिए एक त्रिस्तरीय रणनीति प्रस्तुत की गई है. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के केंद्र सरकार के मिशन को ध्यान में रखते हुए ये रणनीति बनाई गई है.

अधिकारियों ने कहा कि जिन जिलों का चयन किया गया है, उनमें आदिवासी आबादी का अनुपात अधिक है, जिन्होंने अभी तक टीबी पर अंकुश लगाने में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है और जिन्होंने केस-डिटेक्शन अभियान के दौरान अपेक्षाकृत अधिक टीबी के मामलों की सूचना दी.

जनजातीय नेताओं, आदिवासी चिकित्सकों, पंचायती राज संस्थान के सदस्यों, स्वयं सहायता समूहों और आदिवासी क्षेत्रों के युवाओं को साथ जुड़कर समुदाय को एकजुट किया जा रहा है. इससे टीबी के लक्षणों, प्रसार और उपचार प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की उम्मीद है. इसके अलावा इलाज और बीमारी से जुड़े भय को दूर करना भी एक लक्ष्य होगा.

100-दिवसीय आश्वासन अभियान के दौरान इन समुदायों के प्रभावशाली लोगं (Community influencers) की पहचान की गई. इस कदम से समुदाय में और मामले का पता लगाने में भी मदद मिली है.

साथ ही सरकार जिला स्तर पर दो अधिकारियों और प्रत्येक राज्य टीबी सेल में तीन अधिकारियों को तैनात करने की योजना बना रही है.

आश्वसन अभियान जनजातीय मामलों और स्वास्थ्य मंत्रालयों द्वारा शुरू किया गया था और यूएस ऐड (United States Agency for International Development) द्वारा एक तकनीकी भागीदार के रूप में और पीरामल स्वास्थ्य (Piramal Swasthya) को कार्यान्वयन भागीदार के रूप में समर्थित किया गया था.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments