HomeAdivasi Dailyआबकारी मंत्री लखमा को आई देवी, खुद को मारे कोड़े

आबकारी मंत्री लखमा को आई देवी, खुद को मारे कोड़े

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आबकारी मंत्री कवासी लखमा (Kawasi Lakhma) को चर्चा में बना रहना पसंद है. मंभी मोहदय जब देखो अपने बयानों के लिए चर्चा में आते रहते हैं. एक लोकप्रिय नेता को क्या क्या करना चाहिए वो खूब जानते हैं.

कवासी लखमा बस्तर (Bastar) के लोकप्रिय नेता  हैं और लोगों के सुख दुख में शामिल रहते हैं. इसके अलावा वो खुद को जिले में आदिवासी परंपरा, संस्कृति और सभ्यता के अनुसार खुद को संचालित करने वाले आदमी की तरह पेश करते हैं.

लखमा ग्रामीण अंचलों में होने वाले मंडई मेले के साथ-साथ मंदिर के पूजा-पाठ में अपने मौजूदगी दर्ज कराते हैं. मंगलवार को भी कवासी लखमा अपने विधानसभा क्षेत्र कोंटा (Konta) के दोरनापाल गांव (Dornapal Village) में मौजूद प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय मंडई मेले में शामिल हुए.

इस मेले को धूमधाम से मनाने के लिए आदिवासी परंपरा और रीति-रिवाज के तहत देवी से अनुमति ली. इस दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसको देख कर सभी दंग रह गए. बताया जा रहा है कि इस मेले में खुद कवासी लखमा पर देवी सवार हो गई. 

जिसके बाद बस्तरिया मोहरी बाजा में थिरकते  हुए नजर आए और खुद को कोड़े भी मारे. इसके बाद इस तीन दिवसीय मेले को मनाने की अनुमति माता से मिली. जानकारी के मुताबिक दोरनापाल के शीतला माता मंदिर में मंगलवार से तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जा रहा है.

कवासी लखमा, हर साल की तरह इस साल भी अपने विधानसभा क्षेत्र में होने वाले इस मंडई मेले में शामिल हुए थे.

मंत्री ने पुजारियों के साथ किया डांस

इस दौरान उन्होंने पुजारी वेशभूषा में मंदिर के बाकी पुजारियों के साथ डांस किया. कहा जाता है कि खुद शीतला देवी आबकारी मंत्री कवासी लखमा पर सवार हो जाती हैं. 

इसके बाद कवासी लखमा ने उनके अंदर देवी प्रवेश के दौरान खुद को कोड़े मारे और बस्तर के पारंपरिक मोहरी बाजा में थिरकते हुए नजर आए. 

वहीं मंदिर के अंदर जाकर पूजा-पाठ कर इस मंडई मेले को धूमधाम से मनाने के लिए माता से अनुमति ली. फिलहाल आबकारी मंत्री कवासी लखमा का यह वीडियो तेजी से सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है.

राज्य के वरिष्ठ मंत्री कवाली लखमा एक लोकप्रिय आदिवासी नेता हैं. उनकी तारीफ़ करनी पड़ेगी कि वो अपने लोगों के बीच रहते हैं. सत्ता में पहुंचने पर भी वो अपने रीति रिवाजों से दूर नहीं हुए हैं. लेकिन एक जन प्रतिनीधि से यह उम्मीद की जाती है कि वो कुछ ज़िम्मेदारियों का पालन करे. 

सार्वजनिक जीवन में कोई ऐसा काम ना करे जो उनके पद की गरिमा के अनुसार ना हो. यह सवाल कवासी लखमा से ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में कहीं वो अंधविश्वास को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं. 

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