छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र 1 दिसंबर को बुलाया गया है. ये छोटा विधानसभा सत्र होगा और सिर्फ 1 और 2 दिसंबर को विधानसभा की कार्यवाही होगी. इसके लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके ने बुधवार को राज्य विधानसभा के विशेष सत्र बुलाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं.
दरअसल, बुधवार सुबह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी आरक्षण के मुद्दे को लेकर विधानसभा अध्यक्ष को सभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए पत्र लिखा था. इसके बाद दोपहर को राज्यपाल अनुसुइया उईके ने राज्य विधानसभा के 15वें सत्र बुलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
राजभवन से मिली जानकारी के अनुसार राज्यपाल अनुसुईया ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 के खण्ड (1) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए 1 दिसंबर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र के लिए अनुमति दी है.
ये विशेष सत्र आदिवासी कोटे के मुद्दे पर विचार करेगा, जिसने हाई कोर्ट द्वारा शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 58 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करने और इसे “असंवैधानिक” करार दिए जाने के बाद राज्य में राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है.
कोर्ट के आदेश के बाद आदिवासियों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है. जबकि, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 13 प्रतिशत से बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है और ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत ही है.
इस महीने की शुरुआत में राज्यपाल उइके ने मुख्यमंत्री को विधानसभा का एक सत्र बुलाने और एक विधेयक पारित करने या अगर संभव हो तो एक अध्यादेश के माध्यम से विवादास्पद आरक्षण समस्या के समाधान का मांग करने के लिए लिखा था. साथ ही उन्होंने कहा था कि आदिवासी समुदायों में आक्रोश है और इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है.
ऐसे में बुधवार को सीएम भूपेश बघेल ने आदिवासी आरक्षण के मुद्दे को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने का प्रस्ताव विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत को भेजा इसके कुछ घंटे बाद विधानसभा अध्यक्ष ने राज्यपाल को प्रस्ताव भेजा और राज्यपाल ने विधानसभा विशेष सत्र के लिए अनुमति दे दी है.
जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री बघेल ने अपने पत्र में आदिवासी समाज को भरोसा दिलाया है कि राज्य में आरक्षण के मामले में आदिवासी निश्चिंत रहें, उन्हें 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है.
क्या है मामला?
दरअसल, 19 सितंबर को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सितंबर महीने में राज्य सरकार के वर्ष 2012 में जारी उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था. कोर्ट ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है.
इस फैसले के बाद आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है. फैसले के बाद से राज्य के 42 आदिवासी समुदायों का संगठन छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज राज्य सरकार से नाराज है. वहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर आदिवासियों के आरक्षण अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया है.
बीजेपी ने आदिवासी आरक्षण में कटौती के विरोध में बुधवार को राज्य भर में चक्का जाम किया. बीजेपी नेताओं ने बताया कि आदिवासी आरक्षण में कटौती के विरोध में बीजेपी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के साथ मिलकर पार्टी के नेताओं ने अलग-अलग जगहों पर चक्का जाम किया.
उन्होंने बताया कि राजधानी रायपुर में पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय ने आंदोलन का नेतृत्व किया.
बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया कि भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैये के कारण 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ बंद कर दिया गया और अब इसका खामियाजा आदिवासी युवा भुगत रहे हैं.