HomeAdivasi Dailyकोयंबटूर की आदिवासी बस्तियों को मिला सामुदायिक वन अधिकार

कोयंबटूर की आदिवासी बस्तियों को मिला सामुदायिक वन अधिकार

इस प्रक्रिया का नेतृत्व करने वाले कोयम्बटूर उत्तर के राजस्व विभागीय अधिकारी के. बूमा ने कहा कि जीपीएस आधारित सर्वेक्षण स्वयं प्रशिक्षित आदिवासियों द्वारा किया गया था. हालांकि घने वन क्षेत्रों में ट्रेक के दौरान वन विभाग के कर्मचारी उनके साथ थे.

तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में 13 आदिवासी बस्तियों को सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights) प्रदान किया गया. ये बस्तियां पिल्लूर और पालामलाई वन क्षेत्रों में है. ये अधिकार उन्हें GPS आधारित भूमि सर्वेक्षण करने के बाद दिया गया. साल भर चली प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों ने कहा कि यह राज्य में इस तरह का पहला मामला है जिसमें जीपीएस आधारित भूमि सर्वेक्षण किया गया.

बता दें, वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के प्रभाव में आने के 15 वर्षों के बाद आदिवासियों को ये अधिकार मिला है.

अधिकारियों के मुताबिक पिल्लूर के करमदई वन रेंज की सीमा में आने वाली मानार, कोरापढ़ी, केथिकाडु, वीरक्कल, सुंदापट्टी और वेप्पामारथूर बस्तियों तो वहीं पेरियानाइकेनपालयम वन में पलामलाई में पेरुमपति, पेरुकुपथी, पेरुकुपथिपुथुर, कुंजुरपति, मांगुली, पसुंपनिपुथुर और पसुम्पनी बस्तियों को ये अधिकार मिले.

ये क्षेत्र कोयम्बटूर उत्तर डिवीजन के मेट्टुपलायम और कोयंबटूर उत्तरी तालुकों के अंतर्गत आते हैं और पूरी प्रक्रिया राजस्व विभाग, कोयम्बटूर वन प्रभाग और किस्टोन फाउंडेशन द्वारा आदिवासी लोगों की पूरी भागीदारी के साथ की गई थी.

जिला कलेक्टर जीएस समीरन ने बताया कि जीपीएस आधारित मैपिंग को केरल के त्रिशूर जिले के वाझाचल वन प्रभाग में की गई इसी तरह की प्रक्रिया से प्रेरित होकर अपनाया गया था. सीएफआर को समुदायों को सुचारू रूप से सौंपने से पहले क्षेत्रों के सर्वेक्षण, ग्राम सभा सत्र, विवाद प्रबंधन और प्रलेखन कार्यों से जुड़ी प्रक्रिया को पूरा करने में एक साल लग गया.

जीपीएस आधारित सर्वेक्षण का उपयोग कर तैयार किए गए मानचित्र आदिवासी समुदाय प्रमुखों को सौंपे गए है.

इस प्रक्रिया का नेतृत्व करने वाले कोयम्बटूर उत्तर के राजस्व विभागीय अधिकारी के. बूमा ने कहा कि जीपीएस आधारित सर्वेक्षण स्वयं प्रशिक्षित आदिवासियों द्वारा किया गया था. हालांकि घने वन क्षेत्रों में ट्रेक के दौरान वन विभाग के कर्मचारी उनके साथ थे.

बूमा ने बताया कि सीएफआर उन बस्तियों की आजीविका को सुरक्षित करेगा जिनकी आय काफी हद तक वन संसाधनों पर निर्भर करती है.

इन बस्तियों के निवासी अराप्पू, शहद, इमली, बूम बनाने के लिए घास, शिक्काकाई, कडुक्कई, पोचकाई, आम और आंवला जैसे कई लघु वन उत्पाद एकत्र करते थे. लेकिन अब, वे इन उत्पादों को जंगल से उस मामूली शुल्क का भुगतान किए बिना एकत्र कर सकते हैं जो वे पहले ग्राम वन समिति को देते थे.

उन्होंने बताया “ये अधिकार 13 बस्तियों के दो अलग- अलग समूहों को मिला क्योंकि वे क्षेत्रों को साझा करने के लिए सहमत हुए थे. उन्हें 29 मंदिरों और तीन पारंपरिक कब्रिस्तानों के रास्ते का अधिकार भी दिया गया है. कुल मिलाकर, सीएफआर उनकी आजीविका को बेहतर बनाने में मदद करेग. यह उनके सांस्कृतिक अधिकारों की भी रक्षा करता है.”

जिला वन अधिकारी टी.के. अशोक कुमार ने कहा कि प्रक्रिया शुरू करने से पहले वन अधिकार अधिनियम (FRA) और सीएफआर (CFR) की बेहतर समझ के लिए विभाग के कर्मचारियों के लिए एक जागरूकता सत्र आयोजित किया गया था.

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

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