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एकलव्य स्कूलों के आदिवासी छात्रों की ज़रूरत के प्रति सरकार उदासीन है – संसदीय कमेटी

सरकार ने आदिवासी छात्रों के पढ़ने-सीखने के नुकसान के मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन यह स्पष्ट किया कि अटल टिंकरिंग लैब्स अब आठ राज्यों के 18 स्कूलों में स्थापित की गई हैं.

कोविड-19 महामारी के दौरान आदिवासी छात्रों का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था. अब संसदीय समिति की रिपोर्ट ने भी इस पर अपनी चिंता जाहिर की है.

सोमवार को जारी संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र सरकार के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRSs) में नामांकित आदिवासी छात्रों को कोविड-19 महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती है.

कमेटी ने कहा है कि यह नुक़सान हुआ है क्योंकि ऑनलाइन सीखने के लिए उन्हें समय पर संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए थे.  

1997-98 में शुरू किए गए EMRS का उद्देश्य देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है.

“सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर स्थायी समिति” ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ” समिति यह जानकर हैरान है कि ईएमआरएस में स्मार्ट क्लासेस और अटल टिंकरिंग लैब्स (कंप्यूटर लैब जहां छात्र प्रयोग करके सीखते हैं) के प्रावधान और छात्रों के लिए मोबाइल टैबलेट और शैक्षिक किट की खरीद में इतनी देर हो गई है कि ऑनलाइन कक्षाएं प्रदान करने का उद्देश्य कोविड-19 महामारी के दौरान ईएमआरएस स्कूलों में शिक्षा अमल में नहीं लाई जा सकी.”

इसमें कहा गया है, “समिति को लगता है कि इस देरी ने छात्रों को अपरिवर्तनीय रूप से परेशान किया है क्योंकि उन्हें दूरजराज के इलाकों में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए समय पर इन सुविधाओं की आवश्यकता होती है.”

जनजातीय मामलों के मंत्रालय के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के कामकाज की समीक्षा पर समिति की ‘सरकार द्वारा की गई कार्रवाई’ रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि “समिति स्कूलों में इन सुविधाओं के होने में लगातार देरी के कारणों को समझने में असमर्थ है. समिति महसूस करती है कि मंत्रालय (जनजातीय मामलों के मंत्रालय) को यह महसूस करना चाहिए कि काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के गैर-गंभीर दृष्टिकोण के कारण छात्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.”

समिति ने साथ में यह भी कहा कि मंत्रालय के लापरवाह रवैये को ठीक करने की जरूरत है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “आदिवासी छात्रों के शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए अपनी चिंता व्यक्त करते हुए समिति महसूस करती है कि सभी ईएमआरएस में इन सुविधाओं को प्रदान करने में किसी भी तरह की देरी छात्रों को शिक्षा में नई टेक्नोलॉजी से वंचित करेगी जो वर्तमान परिदृश्य में बहुत आवश्यक हो गई है.”

हालांकि, सरकार ने आदिवासी छात्रों के पढ़ने-सीखने के नुकसान के मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन यह स्पष्ट किया कि अटल टिंकरिंग लैब्स अब आठ राज्यों के 18 स्कूलों में स्थापित की गई हैं.

संसदीय समिति की रिपोर्ट ने मंत्रालय द्वारा कई ईएमआरएस स्थापित करने में विफलता की ओर इशारा किया, जैसा कि रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2022 तक लक्षित किया गया था.

2022 का लक्ष्य पूरा होने के करीब नहीं

रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय 2022 तक लक्षित ईएमआरएस की संख्या निर्धारित करने में विफल रहा है और समय सीमा अब 2025 तक बढ़ा दी गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मूल लक्ष्य 12 एकलव्य मॉडल डे बोर्डिंग स्कूल (जहां एसटी आबादी का घनत्व अधिक है) सहित 452 नए ईएमआरएस साल 2022 तक बाकी बचे 462 उप जिलों में स्थापित किए जाएंगे, जो पूरा होने के करीब नहीं है. अब लक्ष्य वर्ष को संशोधित किया गया है जो कि 2025 है.

वहीं रिपोर्ट में शामिल सरकार की प्रतिक्रिया में कहा गया है: “मंत्रालय ने 2022 तक सभी 452 स्कूलों को स्थापित करने का लक्ष्य तय नहीं किया है.”

सरकार का जवाब है, “कैबिनेट नोट 2022 में 452 नए स्कूलों की स्थापना के लिए धन उपलब्ध कराया गया था और चरणबद्ध तरीके से निर्माण की समय सीमा तय की गई थी. जिसके बाद 452 ईएमआरएस में से 396 को आज तक स्वीकृत किया गया है.”

आगे कहा गया है, “कुछ राज्यों ने वन पहाड़ी इलाका होने या उपयुक्त भूमि उपलब्ध नहीं होने के कारण निर्दिष्ट ब्लॉकों में भूमि प्रदान करने में असमर्थता जताई है. इसे देखते हुए मंत्रालय (आदिवासी मामलों के) ने राज्यों से पड़ोसी ब्लॉकों/जिलों में वैकल्पिक भूमि की पहचान करने के लिए कहा है, जहां बहुसंख्यक आदिवासी आबादी है.”

कमेटी रिपोर्ट और मंत्रालय की बेरूखी

आदिवासी मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थाई समिति ने आदिवासी छात्रों या स्कूलों की स्थिति पर पहली बार सवाल नहीं किये हैं. इससे पहले की रिपोर्टों में भी लगातार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि आदिवासी इलाक़ों में एकलव्य मॉडल स्कूलों की स्थापना के लक्ष्य को हासिल करने से सरकार बहुत दूर खड़ी है.

इसके अलावा जो स्कूल फ़िलहाल चल रहे हैं उनमें कोविड के दौरान जो पढ़ाई का नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए सरकार ने कोई विशेष उपाय नहीं किये हैं.

अफ़सोस की बात ये है कि संसद की स्थाई समिति के सिफ़ारिशों को सरकार लगातार अनदेखी कर रही है. हालत ये है कि कोविड के दौरान कितने आदिवासी बच्चों का स्कूल छूट गया, ये आँकड़े सरकार के पास नहीं हैं.

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