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कांग्रेस ने असम के राज्यपाल से आदिवासियों की बेदखली रोकने की अपील की

कांग्रेस ने वन अधिकार अधिनियम और असम काश्तकारी अधिनियम के उल्लंघन का हवाला देते हुए, असम के राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है.

असम के कई आदिवासी और पारंपरिक समुदाय आजकल एक गहरी चिंता में जी रहे हैं. उनकी इस चिंता की वजह है सरकार द्वारा बार-बार चलाए जा रहे बेदखली के अभियान. इन कार्रवाइयाें में उन्हें उनके घरों और ज़मीनों से हटाया जा रहा है.

अब इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए कांग्रेस पार्टी ने असम के राज्यपाल को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है और उनसे अपील की है कि वो तुरंत हस्तक्षेप कर इन कार्रवाइयों पर रोक लगवाएं.

ज्ञापन में कांग्रेस ने कहा है कि असम सरकार की ओर से चलाए जा रहे बेदखली अभियान आदिवासी, स्थानीय और नदी कटाव से प्रभावित उन लोगों को भी उजाड़ रहे हैं जो दशकों से यहां रह रहे हैं. इनमें कुछ आदिवासी तो सदियों से इन इलाकों में रहते हैं.

पार्टी का कहना है कि ये लोग कोई हालिया अतिक्रमणकारी नहीं हैं, बल्कि उनके पास ज़मीन से जुड़े कानूनी दस्तावेज़, वोटर लिस्ट में पुराने नाम और कभी-कभी पैतृक पट्टे तक मौजूद हैं. इसके बावजूद उनके घरों को अतिक्रमण बताकर जबरन हटाया जा रहा है.

कांग्रेस ने राज्यपाल से अपील करते हुए कहा कि उन्हें राज्य की “संविधानिक अंतरात्मा” के रूप में काम करते हुए इन समुदायों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.

ज्ञापन में दावा किया गया है कि साल 2019 से लेकर अब तक कई बेदखली की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें सरकार ने न तो कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया, न ही आदिवासी क्षेत्रों के लिए बने विशेष नियमों का ध्यान रखा. पार्टी ने यह भी बताया कि कई बार ग्राम सभा से सलाह लिए बिना ही बुलडोज़र चला दिए गए.

ज्ञापन में यह भी सुझाव दिया गया कि 2022 के बाद से जिन-जिन लोगों को हटाया गया है, उन सभी मामलों की निष्पक्ष जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनाया जाना चाहिए.

इसके अलावा, राज्य की सभी स्वायत्त परिषदों और ज़िला प्रशासन को यह निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे संविधान में दिए गए प्रावधानों, जैसे PESA कानून का पालन करें, जिसके तहत इस तरह की कार्यों के लिए ग्राम सभा की सलाह अनिवार्य होती है.

कांग्रेस ने यह भी मांग रखी कि राज्य सरकार एक स्पष्ट भूमि नीति बनाए, जिसमें यह फर्क साफ किया जाए कि कौन-से समुदाय लंबे समय से यहाँ बसे हुए हैं और कौन हाल में आए अतिक्रमणकारी हैं.

इसके साथ ही, जो लोग हटाए जा चुके हैं या हटाए जा रहे हैं, उनके लिए पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए. पुनर्वास के अंतर्गत इन परिवारों को मकान, ज़मीन या मुआवज़ा दिया जाए ताकि उनका जीवन सम्मान से चल सके.

ज्ञापन में यह भी ज़िक्र किया गया कि असम के बोरो, कारबी, गारो, अहोम, राभा, नेपाली और बंगाली मूल के मुसलमान जैसे समुदाय इस संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.

इनमें से कई लोग ऐसे हैं जो स्वतंत्रता से पहले से इन क्षेत्रों में रह रहे हैं और पूरी तरह से असम के समाज और संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं.

कांग्रेस ने मिशन वसुंधरा 3.0 योजना पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह योजना लोगों को राहत देने की बजाय बेदखली को आसान बनाने का ज़रिया बन गई है. सरकार की घोषणाओं और ज़मीनी सच्चाई के बीच बड़ा अंतर है.

कांग्रेस ने एक ‘पीपुल्स चार्टर’ भी ज्ञापन के साथ सौंपा. इसमें बेदखली से जुड़े 10 अहम सुझाव शामिल हैं.

इसमें एकसमान नियम बनाने, कानूनी मदद उपलब्ध कराने, पुनर्वास के स्पष्ट मानदंड तय करने और पर्यावरणीय व सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील इलाकों को विशेष सुरक्षा देने जैसी बातें शामिल हैं.

कांग्रेस का कहना है कि अब समय आ गया है कि राज्यपाल इस विषय पर चुप्पी तोड़ें और संविधान का पालन करवाते हुए इन समुदायों की ज़मीन, ज़िंदगी और सम्मान की रक्षा करें.

विकास के नाम पर अगर सदियों से बसे लोग ही उजड़ेंगे तो, यह सिर्फ नीति की असफलता नहीं बल्कि इंसानियत की भी हार होगी.

(Image credit – The Hindu)

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